Kaushambi News: यूपी के कौशांबी (Kaushambi) में रबी की फसल की बुआई शुरू होते ही खाद की किल्लत से किसान परेशान होने लगे हैं. तकरीबन प्रत्येक सहकारी समिति और निजी दुकानों में डीएपी खाद के लिए किसान लाइन में लगाए जाते हैं. सुबह से किसान समितियों और निजी दुकानों के बाहर आकर खड़े हो जाते हैं. जब तक उन्हें खाद मिल नहीं जाती, वह भूखे प्यासे खड़े ही रहते हैं.
इसके बावजूद अधिकारियों को खाद की कमी नहीं दिख रही है. इसके लिए अधिकारी ई-पॉश मशीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. अफसरों का दावा है कि समिति में खाद तो है, लेकिन नेटवर्क नहीं होने से ई-पॉश मशीन नहीं काम कर रही है. वितरण में देरी के कारण ही किसानों की लाइन देखने को मिलती है.
डीएपी खाद के लिए हो रही मारामारी
कौशांबी के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले की लगभग 20 लाख की आबादी है. जिनमें लगभग पौने 2 लाख किसान रजिस्टर्ड हैं. यहां की लगभग 70 फीसदी आबादी कृषि पर आधारित है. जिले में 54 सहकारी समितियां हैं. इसके अलावा एक क्रय-विक्रय केंद्र है. वहीं पांच इफको के आउटलेट से किसानों को खाद की बिक्री की जाती है. इसके बाद भी यहां डीएपी खाद की कमी है. चूंकि इन दिनों रबी का सीजन चल रहा है ऐसे में फसलों की बुआई तेज रफ्तार से चल रही है.
किसानों को आलू के साथ ही सरसों, चना और अन्य फसलों की बुआई करनी है. ऐसे में किसानों के बीच डीएपी की मांग अधिक है. इस साल बारिश की वजह से धान की कटाई लेट हुई है. बारिश खत्म हुई तो सभी किसानों के खेत लगभग एक साथ खाली हुए. उनके बीच खाद की मांग भी एक साथ हो गई. समितियों में पहुंचने पर उनको खाद नहीं मिल रही.
341 मीट्रिक टन डीएपी किसानों के लिए रखी
वहीं सहकारिता विभाग के आंकड़ों की मानें तो जिले की समितियों ने रबी अभियान के लिए 4,481 मीट्रिक टन डीएपी का लक्ष्य रखा था. इसमे 4173 मीट्रिक टन खाद समितियों में भेजी जा चुकी है. 341 मीट्रिक टन डीएपी समितियों में किसानों के लिए रखी है. एआर कोऑपरेटिव विनोद कुमार सिंह ने बताया कि जिले में खाद की कमी नहीं है. शासन के निर्देशानुसार खाद पॉश मशीन से वितरण होता है. ऐसे में कभी कभार सर्वर डाउन हो जाता है.
इस वजह से लाइन में खड़े हो करके किसानों को इंतजार करना पड़ता है. सर्वर चालू होते ही पॉश मशीन से खाद का वितरण करना शुरू हो जाता है. प्रत्येक किसान को खाद देने का प्रयास किया जाता है. सरकारी डीएपी का रेट 1,350 रुपये है. किसानों के साथ कालाबाजारी भी नहीं हो रही है.
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