Independence Day Special: कौन थीं आजादी के आंदोलन की गुमनाम नायिका वीरांगना दुर्गा भाभी? भगत सिंह और राजगुरु की ऐसे की थी मदद
Independence Day 2022: वीरांगना अपने 3 साल के बेटे को साथ लेकर भगत सिंह को पति और राजगुरु को नौकर बताकर अंग्रेज सिपाहियों की आंखों में धूल झोंककर लखनऊ की ट्रेन में बैठी थीं.
Azadi Ka Amrit Mahotsav: यूपी के कौशांबी में मां गंगा के किनारे शहजादपुर गांव बसा है. 7 अक्टूबर 1902 को पंडित बांके बिहारी के घर में दुर्गा भाभी का जन्म हुआ था. तब पंडित बांके बिहारी को यह नहीं पता था कि उनकी बेटी देश की आजादी में अहम भूमिका निभाएगी. दुर्गा भाभी के मन में बचपन से ही क्रांतिकारी बनने की ललक थी. हालांकि 10 वर्ष की आयु में ही इनकी शादी लाहौर में रेलवे अफसर के बेटे भगवती चरण बोहरा के साथ हुई थी. इनके पति आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़कर क्रन्तिकारियों का साथ दे रहे थे. दुर्गा भाभी को पति का साथ मानों एक मशाल की तरह था.
भगत सिंह और उनके साथियों की मदद कीं
दुर्गा भाभी के पिता प्रयागराज के कलेक्ट्रेट में नाजिर के पद पर तैनात थे. बताया जा रहा है कि इनका मायका और ससुराल काफी संपन्न था. जब अंग्रेज अफसर की हत्या करने के बाद भगत सिंह अपने साथियों के साथ फंस गए तो दुर्गा भाभी ने ही इन्हें लखनऊ और फिर कलकत्ता तक पत्नी बनकर निकाला था. 15 अक्टूबर 1999 को 97 वर्ष की उम्र में वीरांगना दुर्गा भाभी इतिहास के पन्नों में नाम दर्ज कराकर हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कहकर चली गईं.
कैसे कीं थीं क्रांतिकारियों की मदद
क्रांतिकारी दुर्गा भाभी एक ऐसी वीरांगना थीं जिन्हें बहुत ही कम लोग जानते हैं लेकिन आजादी की लड़ाई में इन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया था. वे क्रांतिकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चली थीं. अंग्रेज भी दुर्गा भाभी का नाम सुनकर थर-थर कांपते थे. 19 दिसंबर 1928 को जब अंग्रेज अफसर जॉन सांडर्स की भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हत्या कर दी थी तो अंग्रेजी हुकूमत तीनों को खोजने में जुट गई. तीनों क्रांतिकारी उनके पास मदद के लिए पहुंचे. तब दुर्गा भाभी ने उन्हें बचाने का वादा किया था क्योंकि उनके पति ने क्रन्तिकारी साथियों के बुरे समय में मदद के लिए उन्हें छोड़ रखा था. वीरांगना अपने तीन वर्षीय बेटे को साथ लेकर भगत सिंह को अपना पति और राजगुरु को अपना नौकर बताकर अंग्रेज सिपाहियों की आंखों में धूल झोंककर लखनऊ की ट्रेन में बैठी थीं.
15 अक्टूबर 1999 को अंतिम सांस लीं
लखनऊ पहुंचते ही भगत सिंह ने भगवती चरण को एक टेलीग्राम लिखा और बताया कि वह दुर्गा भाभी के साथ कलकत्ता आ रहे हैं जबकि राजगुरु बनारस निकल गए. कलकत्ता पहुंचने पर भगवती चरण ने जब अपनी पत्नी को देखा तो उन्हें गर्व हुआ. 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हो गया तो दुर्गा भाभी लखनऊ में एक गुमनामी की जिंदगी जीने लगीं. 15 अक्टूबर 1999 को 97 वर्ष की उम्र में दुर्गा भाभी ने गाजियाबाद में अंतिम सांस ली. दुर्गा भाभी इतिहास के पन्नो में अपना नाम दर्ज कराकर हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कहकर चली गईं.
उनके भतीजे ने क्या बताया
हजादपुर निवासी उदय शंकर भट्ट ने बताया कि, वीरांगना दुर्गा भाभी मेरे पिता जी की बहन थीं यानि रिश्ते में वह मेरी बुआ हैं और मैं उनका भतीजा हूं. वह क्रन्तिकारियों के लिए राजस्थान के जयपुर से माउजर (असलहा) लाती थीं. मुल्तान से बम की खोल भी लाती थीं. क्रन्तिकारियों के मुकदमे की पैरवी भी करती थीं. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु उनके पति के अनन्य साथी थे. एक अंग्रेज गवर्नर पर गोली भी चलाई थी. कई दिन तक नजर बंद भी थीं. 1937 में मद्रास जाकर मालिया से शिक्षिका के लिए ट्रेनिंग की थी. लखनऊ में एक विद्यालय भी खोला और बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का काम किया था क्योंकि उस समय शिक्षा बहुत ही महंगी थी. 1940 से 1980 तक लखनऊ में रहीं. अस्वस्थ्य होने पर वह अपने बेटे सचिन के पास गाजियाबाद में रहने के लिए चली गईं थी. 1973 में परिवार के चचेरे भाई की शादी में आखिरी बार 2 घंटे के लिए कानपुर आईं थी तभी उनसे मुलाकात हुई थी.