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शैला रानी रावत के बाद किसके सिर सजेगा केदारनाथ का ताज? बीजेपी-कांग्रेस में मंथन शुरू

Kedarnath Bypoll Election 2024: केदारनाथ विधानसभा सीट पर अगले माह 20 नवंबर को उपचुनाव होगा, जबकि नतीजे 23 नवंबर को आएंगे. यह सीट भारतीय जनता पार्टी की विधायक शैला रानी रावत की मौत के बाद खाली हुई है.

Kedarnath By Election 2024: केदारनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव का शंखनाद होते ही टिकट के दावेदारों की हलचल तेज हो गई है. चुनावी रणनीति को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो चुका है. यह सीट बीजेपी विधायक शैला रानी रावत के निधन के बाद खाली हो गई है.

शैला रानी रावत का बीते 9 जुलाई 2024 को बीमारी के कारण निधन हो गया था. अब इस सीट पर 20 नवंबर 2024 को उपचुनाव होगा. जबकि इसके तीन दिन बाद यानी 23 नवंबर को नतीजों का ऐलान किया जाएगा. 

शैला रानी रावत की मौत के बाद इस क्षेत्र में सियासी गहमागहमी तेज हो गई है. करीब ढाई महीने के इंतजार के बाद निर्वाचन आयोग ने आखिरकार उपचुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है और जिसके बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. 

इस उपचुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) पिछले दो महीने से क्षेत्र में सक्रिय हैं. पार्टी पदाधिकारी विधानसभा क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं और लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस भी केदारनाथ में जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

केदारनाथ का सियासी इतिहास
केदारनाथ विधानसभा सीट पर अब तक की सियासत में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद, साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. आशा नौटियाल ने कांग्रेस की शैलारानी रावत को हराया था.

इसके बाद साल 2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से आशा नौटियाल को प्रत्याशी बनाया. इस बार कांग्रेस ने कुंवर सिंह नेगी को मैदान में उतारा था. कांग्रेस को प्रत्याशी बदलने का फायदा नहीं मिला और उसे फिर से हार का सामना करना पड़ा. 

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर आशा नौटियाल को प्रत्याशी बनाया, जबकि कांग्रेस ने शैला रानी रावत को दोबारा मैदान में उतारा. इस बार शैला रानी रावत ने जीत दर्ज कर केदारनाथ विधानसभा सीट पर पहली बार कांग्रेस का झंडा लहराया.

हालांकि, 2016 में शैला रानी रावत ने पाला बदल लिया और उन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं. इससे कांग्रेस को बड़ा झटका लगा.

2017 के चुनावों में बागी हुए नेता
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शैला रानी रावत पर भरोसा जताया और उन्हें टिकट दिया. इस फैसले से नाराज होकर पूर्व विधायक आशा नौटियाल ने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा. इस बगावत का असर यह हुआ कि बीजेपी चौथे स्थान पर खिसक गई.

इस बगावत का कांग्रेस को फायदा मिला. कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत पहली बार केदारनाथ विधानसभा से विधायक चुने गए. बागी रुख अपनाने के कारण आशा नौटियाल को भारतीय जनता पार्टी ने निलंबित कर दिया था.

शैला रानी रावत ने की वापसी
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर शैला रानी रावत पर विश्वास जताया और उन्हें केदारनाथ विधानसभा से प्रत्याशी बनाया. इस बार उन्होंने बीजेपी के विश्वास पर खरा उतरते हुए जीत हासिल की और बीजेपी का खोया वोट बैंक वापस दिलाया. 

अपने कार्यकाल के दौरान शैला रानी रावत बीमारी से जूझती रहीं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने क्षेत्र की समस्याओं को प्रमुखता से राज्य और केंद्र सरकार के समक्ष रखा. शैला रानी रावत का यह कार्यकाल महज ढाई साल का रहा, क्योंकि उनके निधन के बाद सीट खाली हो गई और अब 20 नवंबर को इस सीट पर उपचुनाव होना तय है. 

बीजेपी-कांग्रेस में मंथन शुरू
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां इस उपचुनाव में जीत के लिए कमर कस चुकी हैं. कांग्रेस की तरफ से टिकट के दावेदारों में पूर्व विधायक मनोज रावत, जिलाध्यक्ष कुंवर सजवाण और पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत का नाम प्रमुखता से चर्चा में है.

बीजेपी भी अपने प्रत्याशी को लेकर मंथन कर रही है, लेकिन बागी नेताओं ने पार्टी के सामने कई समस्या पैदा कर दी है. केदारनाथ उपचुनाव में बीजेपी- कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है. दोनों ही दल अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए सर्वे और रणनीति तैयार करने में जुटी हुई हैं.

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