केदारनाथ आपदा के 7 साल पूरे, धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही जिंदगी, लेकिन त्रासदी के जख्म आज भी हरे
केदारनाथ आपदा के 7 साल पूरे हो चुके हैं. इतने सालों में धीरे-धीरे लोगों की जिंदगी पटरी पर लौट रही है, लेकिन त्रासदी के जख्म आज सभी के जेहन में जिंदा हैं.
देहरादून: उत्तराखंड में 16 जून 2013 को आई आपदा के सात साल पूरे हो चुके हैं. केदारनाथ धाम में आए उस जल प्रलय के जख्म आज तक नहीं भरे हैं. 2013 की भीषण आपदा ने केदार घाटी और चमोली की खीरोंघाटी में भारी तबाही मचाई थी. इतने सालों बाद इन घाटियों में जीवन धीरे-धीरे सामान्य तो हो रहा है, लेकिन आपदा के जख्म आज भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं, जो उनके चेहरे पर साफ देखे जा सकते हैं. जिस घाटी में कभी हरी-भरी फसलें लहराती थीं. आज वहां केवल उबड़-खाबड़, बंजर मकान और आपदा के निशान दिखाई देते हैं. अब कोरोना काल ने भी 2013 की आपदा जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. बमुश्किल जो यात्रा धीरे-धीरे पटरी पर उतर रही थी, उसपर ब्रेक लग गया है.
2013 में आई आपदा ने खीरों घाटियों में भारी नुकसान पहुंचाया था. केदारनाथ के पिछले भाग से जल प्रलय का जो सैलाब आया था, उसकी तबाही इतनी खतरनाक थी कि जल प्रलय का मलबा चोराबाड़ी से आधा केदारनाथ धाम को अपनी चपेट में ले गया और आधा हिस्सा खीरों घाटी से होकर लामबगड़, बेना कुली , पांडुकेश्वर और गोविंद घाट पहुंचा. जिसमें सैकड़ों मकान जमींदोज हो गए और लाखों एखड़ फसलें बर्बाद हो गई. लोग भूमिहीन हो गए. होटल, दुकान, गुरुद्वारा,पार्किंग सब आपदा की भेंट चढ़ गए.
हालांकि राज्य सरकारों ने 2013 की आपदा के बाद इन घाटियों में निर्माण कार्य अवश्य शुरू किया, लेकिन तबाही के निशान आज भी जिंदा है. अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है. जिस कारण लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. जहां पुल बह चुके हैं, रास्ते बर्बाद हो चुके हैं. इन सबको दुरुस्त करने का काम तो चल रहा है, लेकिन शायद इस निर्माण कार्य में थोड़ी स्पीड बढ़ानी बाकी है. नए-नए पुल बनाए तो जा रहे हैं, लेकिन पुलों का कार्य भी अभी पूरा नहीं हो पाया है. आधे- अधूरे कार्य से लोगों को काफी परेशानी हो रही है. घाटी में बिजली की समस्या से लेकर पैदल रास्ते की समस्या है. हालांकि, इस घाटी में लोग केवल 6 माह के लिए कृषि कार्य के लिए जाते हैं, लेकिन छह माह भी यहां पर डर-डरकर बिताने को ग्रामीण मजदूर हैं.2013 की आपदा में बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग लामबगड़ स्लाइड पूर्ण तरीके से क्षतिग्रस्त हो गया था. आपदा से पहले 1997 से लगातार इस जगह पर भारी भूस्खलन हो रहा था, लेकिन 2013 की आपदा में बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग भारी मात्रा में क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार के प्रयासों से आज इस स्लाइड का ट्रीटमेंट कार्य चल रहा है, जिससे लोगों को आवागमन में थोड़ी सुविधा मिल रही है.
हेमकुण्ड यात्रा में लक्ष्मण गंगा में आई जल प्रलय ने भी भारी नुकसान पहुंचाया था. इस जल प्रलय के चलते भयूडार, पुलना दोनों गांव लक्ष्मण गंगा के सैलाब में बह गए थे. सैकड़ों दुकानों सहित पैदल मार्ग व पुल बह गए थे. हजारों यात्रियों को हेली रेस्क्यू और सेना, आईटीबीपी के जवानों व शासन- प्रशासन ने रेसक्यू कर सुरक्षित बाहर निकाला था.
2013 की आपदा के बाद 2014 और 2015 2016 तक यात्रा नहीं चल पाई. 2017 और 2018 में यात्रा ने रिकॉर्ड तोड़ स्पीड पकड़ी. 2019 में 12 लाख के आसपास श्रद्धालुओं ने यात्रा पूरी की, लेकिन लामबगड़ स्लाइड पर बार-बार मार्ग बंद होने से यात्रियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. आपदा के बाद सरकारों के प्रयास से करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद इस स्थान का ट्रीटमेंट कार्य किया जा रहा है. वहीं, लामबगड़ बाजार 2013 की आपदा के दौरान अलकनंदा नदी के तेज बहाव में बह गया था, जो अब धीरे धीरे संवरने लगा है.
2013 की आपदा का असर उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में दिखाई दिया. सरकारों को चाहिए कि आपदा से निपटने के प्रबंधों को मजबूत किया जाए. साथ ही, निर्माण कार्य में युद्धस्तर की वृद्धि की जाए, ताकि समय पर लोगों को सुविधा मुहैया हो सके. चमोली जनपद की खीरों घाटी के साथ भ्यूंडार घाटी भी आपदा की मार से प्रभावित हुई. जहां लोगों के सैकड़ों भवन, लॉज, मकान, दुकान बह गए और सैकड़ों लोग बेघर हो गए, लेकिन अब धीरे-धीरे पहाड़ों में आपदा के जख्म भर रहे हैं और लोगों का जीवन पटरी पर लौट रहा था. अब वैश्विक महामारी कोरोना ने भी फिर आपदा जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. जिसका उत्तराखंड के पर्यटन पर गहरा असर पड़ा है.
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