नई दिल्ली, एबीपी गंगा। भारत जैसे देश में चुनाव हो और नारों की बात ना हो.. ऐसा मुमकिन नहीं। बात चाहे पंचायत चुनाव की हो या फिर आम चुनाव की। चुनावों में लगने वाले नारे अलग छाप छोड़ जाते हैं। कुछ नारे ऐसे भी होते हैं जो जनता की जुबां पर चढ़ जाते हैं। बदलते समय में नारों के प्रचार का तरीका भी बदला है। पहले जहां दीवारों पर लगे पोस्टरों या फिर लाउडस्पीकर के जरिए नारों का प्रचार किया जाता था, तो वहीं बदलते जमाने में इसकी सोशल मीडिया और टीवी चैनल्स ने ले ली है। आज बात करेंगे कुछ ऐसे ही नारों की जिन्होंने चुनावी फिजा बदल दी।
- जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल
कांग्रेस के चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी के खिलाफ जनसंघ ने ये नारा दिया था। जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीया-बाती था।
- इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं
जनसंघ के नारे के जवाब में कांग्रेस ने भी हमला बोला था। कांग्रेस का ये नारा खासा चर्चा में रहा था।
- गरीबी हटाओ
साल 1971 के आम चुनाव में बोला गया ये नारा आज भी उस दौर की यादें ताजा कर देता है। गरीबी हटाओं के नारे ने इस चुनाव में इंदिरा को शानदार जीत दिलाई और 'इंदिरा इज इंडिया' की जमीन तैयार की।
- देखो इंदिरा का खेल, खा गई राशन, पी गई तेल
इंदिरा के 'गरीबी हटाओ' नारे को विरोधियों ने इस नारे से जवाब दिया था।
- इंदिरा हटाओ, देश बचाओ
1975 में लगे आपातकाल के बाद विपक्ष ने इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ के नारे को इंदिरा हटाओ में बदल दिया। 1977 में जय प्रकाश नारायण द्वारा दिया गया ये नारा हिट रहा और इस नारे ने केंद्र से कांग्रेस की सत्ता उखाड़ दी। ये वो दौर था जब पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। इस चुनाव में खुद इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी अपनी सीट नहीं बचा पाए।
- जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में
- नसबंदी के तीन दलाल- इंदिरा, संजय, बंसीलाल
आपातकाल और नसबंदी अभियान के खिलाफ ये नारा काफी मशहूर हुआ
- एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर-चिकमंगलूर
1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर से इंदिरा गांधी उप चुनाव लड़ रही थी। पूरा विपक्ष इंदिरा को हराने में जुट गया था। उस दौरान दक्षिण भारत के कांग्रेसी नेता देवराज उर्स ने यह नारा दिया था। इस चुनाव को जीतकर इंदिरा ने संसद में वापसी की।
- जात पर ना पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगाना हाथ पर
कांग्रेस के लिए साहित्यकार श्रीकांत वर्मा ने ये नारा लिखा था। ये नारा काफी चर्चा में रहा था।
- जब तक सूरज-चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा।
1984 में इंदिरा की हत्या के बाद कांग्रेस ने नारा दिया था। उनकी हत्या के बाद तुरंत चुनाव हुए और इसमें कांग्रेस ने 404 सीटों पर कब्जा जमाया।
- उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आम चुनाव में ये नारा गूंजा। राजीव गांधी 40 की उम्र में 400 से ज्यादा सीटें लाकर सत्ता पर काबिज हुए थे।
- राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है
अगले चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। वीपी सिंह को लेकर बना ये नारा उस दौर का चर्चित नारा था।
- सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे। ये तो पहली झांकी है, काणी-मथुरा बाकी है। रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे।
राम मंदिर के दौर में भाजपा और संघ का नारा खासा चर्चा में रहा था।
- सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी
- अटल-आडवाणी, कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान
पहली बार बीजेपी को केंद्र की सत्ता में काबिज होने के चुनावी अभियान में इस नारे ने भी खूब असर दिखाया। 1996 के चुनाव में भाजपा ने यह नारा दिया था। भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी ने सहयोगियों दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई।
- अबकी बार मोदी सरकार
लंबे समय तक कोई नारा जनता की जुबां पर नहीं चढ़ पाया। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से नारा दिया गया। इस चुनाव में मोदी की ऐसी लहरी चली कि 1984 के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनी जबकि कांग्रेस 44 सीटों पर सिमटकर रह गई।