कुंडली से जानें विदेश यात्रा का योग, चन्द्रमा का है विशेष महत्व
कुंडली में बारहवें भाव का संबंध विदेश और विदेश यात्रा से जोड़ा गया है। चन्द्रमा को विदेश यात्रा का नैसर्गिक कारक माना गया है।
विदेश यात्रा की लालसा सभी के मन में रहती है। आज के आधुनिक दौर में हर कोई यह चाहता है कि वह विदेश में बेहतर पढ़ाई कर सके और फिर अच्छी नौकरी भी मिल जाए। विदेश यात्रा को सफलता और भाग्यशाली होने का प्रमाण माना जाता है। लेकिन सिर्फ सोचने भर से विदेश यात्रा का सपना पूरा नहीं हो सकता है। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि आप कुंडली के द्वारा यह कैसे जान सकते हैं कि आप विदेश यात्रा कर पाएंगे या नहीं।
कुंडली में बारहवें भाव का संबंध विदेश और विदेश यात्रा से जोड़ा गया है। चन्द्रमा को विदेश यात्रा का नैसर्गिक कारक माना गया है। कुंडली का दशम भाव हमारी आजीविका को दिखाता है तथा शनि आजीविका का नैसर्गिक कारक होता है अत: विदेश यात्रा के लिये कुंडली का बारहवां भाव, चन्द्रमा, दशम भाव और शनि का विशेष महत्व होता है।
ज्योतिषशास्त्र में विदेश यात्रा की स्थिति को पाप ग्रहों यानी शनि, राहु, केतु और मंगल से जाना जाता है। ज्योतिष विद्वानों का मानना है कि कुंडली में चौथा और बाहरवें घर या उनके स्वामियों का संबंध यानी उस घर में स्थित राशि के स्वामी से विदेश में स्थायी रूप से रहने का सबसे बड़ा योग बनता है। इस योग के साथ चतुर्थ भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव आवश्यक है। यानी उस घर में कोई भी पाप ग्रह स्थित हो या उसकी दृष्टि हो।
सप्तम और बाहरवें भाव या उनके स्वामियों का परस्पर सम्बन्ध जातक को विवाह के बाद विदेश लेकर जाता है। यह योग कुंडली में हो तो व्यक्ति विदेश में शादी कर के या किसी विदेशी मूल के व्यक्ति से शादी करने के बाद वीजा पाने में सफलता पता है।
पंचम और बाहरवें भाव के साथ उनके स्वामियों का संबंध शिक्षा के लिए विदेश जाने का योग बनता है। इस योग में जातक पढ़ने के लिए विदेश जा सकता है।
दसवें और बाहरवें भाव या उनके स्वामियों का संबंध व्यक्ति को विदेश से व्यापार या नौकरी के अवसर देता है।
चतुर्थ और नवम भाव का संबंध जातक को पिता के व्यापार के कारण या पिता के धन की सहायता से विदेश ले जा सकता है।
नवम और बाहरवें भाव का संबंध व्यक्ति को व्यापार या धार्मिक यात्रा के लिए विदेश ले जा सकता है। इस योग में जातक का पिता भी विदेश व्यापार या धार्मिक वृतियों से सम्बन्ध रखता है।
लग्नेश सप्तम भाव में हो तो भी जातक विदेश जा कर रह सकता है।
राहु और चन्द्रमा का योग किसी भी भाव में हो जातक को अपनी दशा में विदेश या जन्म स्थान से दूर ले कर जा सकता है। इन सब योगों के साथ-साथ कुंडली में अच्छी दशा होना अनिवार्य है, अन्यथा यह योग या तो फलीभूत नहीं होंगे या फिर जातक को विदेश जाने पर हानि और अपमान का सामना करना पड़ सकता है।