कासगंज. यूपी के कासगंज जिले की शीला बुआ आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. अपनी कड़ी मेहनत से शीला बुआ ने जिंदगी के रास्ते में आई तमाम रुकावटों से ना सिर्फ पार पाया बल्कि समाज के लिए मिसाल भी पेश की. अमापुर थाना इलाके के छोटे से खेड़ा गांव में रहने वाली 62 साल की शीला बुआ महिला सशक्तिकरण का जीता-जागता उदाहरण है.


शादी के एक साल बाद हुई पति की मौत
शादी के सिर्फ एक साल बाद अपने पति को खो चुकी शीला जिंदगी के रास्ते पर अकेली पड़ गई थी. पति की मौत के बाद उन पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा. इसके बाद शीला वापस अपने पिता के घर पर आकर रहने लगीं. परिवार का खर्चा चलाने के लिए उन्होंने दूधिया की तरह दूध बेचना शुरू किया. करीब 40 साल पहले उस समय एक महिला को गांव से 6 किलोमीटर दूर तक जाकर दूध बेच कर आजीविका चलाना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. पर शीला बुआ ने अपने मजबूत इरादों से वो कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी. मुसीबतों और विपत्तियों का पहाड़ भी उनको अपने लक्ष्य से डिगा नही पाया. आज भी वो 62 साल की उम्र में अपने घर में भैंस पालकर, घर का सारा काम कर 6 किलोमीटर दूर खुद साइकल से दूध बेचने जाती हैं.


पिता के साथ खेती में बंटाया हाथ
अपने पति की मौत के बाद उन्होंने हिम्मत कर अपने बुजुर्ग पिता की 4 बीघा जमीन में ही खेती बाड़ी में हांथ बटाना शुरू किया. जिसके बाद उन्होंने अपने चार बहनों और भाई की शादी कर दी. शीला बुआ की मेहनत से उनकी जिंदगी पटरी पर लौट ही रही थी कि लगभग 24 साल पहले पिता और फिर मां की मौत ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. मगर शीला बुआ के मजबूत इरादों ने हार नहीं मानी. जीविका का कोई साधन न देखकर वो भैंस पालकर आस-पास के गावों में दूध बेचने लगीं. इस कमाई से उन्होंने फिर और भैंसे खरीदी. काम बढ़ा तो वो खेड़ा गांव से 6 किलोमीटर दूर जाकर अमापुर कस्बे में दूध बेचने लगीं. आज 62 साल की उम्र में भी शीला बुआ उसी जोश के साथ खुद ही साइकल चलाकर अमापुर में दूध बेचने जाती हैं. पिछले 25 वर्षों से वो अपना, अपने परिवार, भाई, भतीजों का भरण पोषण कर रही हैं.


शीला बुआ आज घर मे 5 भैंसों को पालकर उनकी देखभाल खुद ही करती हैं. उनके इस काम मे उनकी उम्र भी आड़े नही आती है. गांव के लोग उनको पूरा सम्मान देते हैं और प्यार से उनको शीला बुआ कहते हैं.


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