UP News: पूरे देश मे रंगों का पर्व होली (Holi) बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस होली के त्यौहार की शुरुआत हरदोई (Hardoi) से ही हुई थी. हरदोई का यह प्रह्लाद कुंड (Prahlad Kund) जहां होलिका (Holika) जली थी और भगवान ने नरसिंह (Narsingh) अवतार लिया था आज भी मौजूद है. राक्षसराज हिरण्यकश्यप (Hiranyakashipu) जो कि भगवान का शत्रु था यहां उसकी राजधानी थी.


क्या है मान्यता
माना जाता है कि हिरण्यकश्यप हरिद्रोही था इसलिए इस नगरी को हरिद्रोही कहा जाता था, जो आज हरदोई के नाम से जाना जाता है. वहीं यह भी कहा जाता है कि यहां हरि ने दो बार अवतार लिया था. इसलिए हरिद्वई के नाम से जाना था जो अब हरदोई हो गया. यहां यह भी प्रचलित है कि हिरण्यकश्यप भगवान का शत्रु है इसलिए उसकी राजधानी में कोई राम का नाम नहीं लेता था क्योंकि उसने "र" शब्द के उच्चारण पर प्रतिबंध लगाया था. ऐसे में आज भी हरदोई के कई हिस्सों में लोगों की बोलचाल की भाषा में मुह से "र" शब्द नहीं निकलता है. कई हिस्सों में आज भी लोग हरदी को हददी, उरद को उद्द व बर्ध को बद्ध बोलते है.


क्या है हिरण्यकश्यप की कहानी
बता दें की देशभर में 17 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा. इस होलिका दहन को लेकर मान्यता है कि आधुनिक होली के बीज इसी हरदोई शहर से पड़े थे. आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्यप की नगरी के नाम से जाना जाता था. यह वही हिरण्यकश्यप था जो खुद को भगवान से बड़ा बताने लगा था. हिरण्यकश्यप भगवान को बिल्कुल नहीं मानता था और इसलिए हिरण्यकश्यप की राजधानी का नाम हरिद्रोही था.


प्राचीन काल से ही मान्यता है कि इसी हरदोई जिले में इसी कुंड के पास ही हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जलकर राख हो गई थी और उसी के बाद यहां के लोगों ने खुश होकर होली का उत्सव मनाया था. हिरण्यकश्‍यप भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था और उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. इसी बात को लेकर पिता हिरण्यकश्यप पुत्र प्रहलाद से नाराज रहते थे.


उन्होंने अपने बेटे की इसी ईश्वरीय आस्था से नाराज होकर कई बार मरवाने की कोशिश की लेकिन सफल न हुए. हिरणकश्यप की बहन होलिका आग में जल नहीं सकती थी और हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन को बुलाया और प्रह्लाद का वध करने के लिए कहा.


कहां से शुरु हुई अबीर-गुलाल की परंपरा
मंदिर के पुजारी ने कहा कि हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका से बेटे प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए कहा, जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाए. लेकिन भगवान की कृपा से हुआ उल्टा यानी होलिका जब प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठीं तो उनकी शक्ति कमजोर पड़ गई. जिसके बाद होलिका खुद जलकर राख हो गई और भक्त प्रह्लाद बच गए.


होलिका के जलने के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. होलिका के जलने और हिरण्यकश्यप के वध के बाद लोगों ने यहां होलिका की राख को उड़ाकर  उस्तव मनाया. कहा जाता है मौजूदा वक्त में अबीर-गुलाल उड़ाने की परंपरा की शुरुआत यहीं से शुरू हुई.


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