31 वर्ष पुराने पीलीभीत फर्जी एनकाउंटर की कहानी, सुने पीड़ितों की जुबानी, 10 सिख तीर्थयात्रियों की हुई थी हत्या
31 वर्ष पुराने पीलीभीत फर्जी एनकाउंटर मामले में हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट पीड़ित परिवार फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही रहे हैं. वहीं पीड़ित परिवारों ने एनकाउंडर की दर्दनाक कहानी भी बताई है.
Pilibhit Encounter Case: 31 वर्ष पुराने पीलीभीत फर्जी एनकाउंटर मामले में बीते गुरुवार को हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला आया. कोर्ट का फैसला आने के बाद 43 दोषी पुलिसकर्मियों को सात वर्ष की सजा हुई. सजा हो जाने के बाद पीलीभीत एनकाउंटर मामले से जुड़े परिवारों के दर्द को एक बार फिर उभार दिया है. एनकाउंटर में मारे गए तीन सिख परिवारों के परिजन इस फैसले से सन्तुष्ट नहीं हैं. जिसको लेकर अब परिजन सुप्रीम कोर्ट में अपील कर आए फैसले के खिलाफ 2016 में सीबीआई कोर्ट के फैसले को ही मान्य करने की मांग करेंगे. पूरे मामले केस की पैरवी करने वाले मृतक नरिंदर के भाई हरजिंदर कहलो ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर फैसले से असंतुष्ट होने की बात कही है. वहीं मृतकों के परिजन 31 साल पुरानी घटना को याद करके रो रहे हैं.
31 साल पुराने मामले में गुरुवार को हुई सुनवाई के बाद एक बार फिर सिक्ख समुदाय के लोगों के जख्म हरे हो गए. पीलीभीत जिले में 12 जुलाई 1991 की रात में थाना पूरनपुर-माधोटांडा, बिलसंडा और न्यूरिया क्षेत्र में तीन अलग-अलग जगह पर 10 सिख तीर्थयात्रियों को बस से उतार कर आतंकवादी बताकर एनकाउंटर कर दिया था. इस मामले में आरोपी 47 पुलिसकर्मियों को हाईकोर्ट ने गुरुवार को सात वर्ष की सजा सुनाई थीं. इस फैसले के बाद से मृतक परिवार खुश नहीं हैं. वहीं इस मामले के मुख्य पैरोकार हरजिंदर सिंह कहलो सुप्रीम कोट जाने की बात कह रहे हैं. एनकाउंटर में मारे गए नीरेन्द्र सिंह की पत्नी जसबन्त कौर फैसला आने के बाद एक बार फिर रो पड़ी और रोते-रोते 31 साल बाद कि पूरी घटना को फिर से जिंदा कर दिया.
क्या बोले पैरोकार?
हरजिंदर सिंह कहलो जो इस मामले के मुख्य पैरोकार और म्रतक नरिंदर सिंह के भाई हैं. उन्होंने कोर्ट फैसले के बाद कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और जो फैसला आया है हम उससे संतुष्ट नहीं हैं. कहलो के बताया कि नीरेंद्र सिंह मेरे रिश्तेदार हैं, एनकाउंटर में मारे गए थे. वो अपनी मां के साथ तीर्थ पर गए थे. बस में पीलीभीत और पंजाब के सिक्ख लोग थे, बस जब लौट रही थी, बदायूं में इस बस को पीलीभीत पुलिस ने रोक लिया और 11 लोगों को बस से उतार लिया. उसी रात को इन 11 लोगों में तीन अलग-अलग जगह पर ले जाकर इनको पीलीभीत के अलग-अलग थाना क्षेत्र में मार दिया गया.
11 में एक का पता आज तक नहीं लगा. इस मामले में मारे गये नीरेंद्र सिंह की माता ने पूरी बात हमको बताई. उसके बाद मैंने इसमें पैरवी करनी शुरू की. हमने मौजूदा पुलिस अधीक्षक से बात की, लेकिन उसने मुझ को फटकार दिया और मुझे भी मारने की धमकी दी. उसके बाद मैं उन लोगों से मिला जो मेरी इस मामले में मदद कर सकते थे. उसके बाद तय हुआ कि हम इसको सीबीआई इंक्वायरी में ले जाने का प्रयास करेंगे. फिर जिसने हमारी बात हो रही थी, उन्होंने मुझसे कहा गया उस घटना में बस के अंदर जो बैठा था उसको लाओ.
फिर मैं नीरेन्द्र सिंह की माता को भेष बदलकर सुप्रीम कोर्ट ले गया. वहां उनका एफिडेविट लगवाया और फिर हमारी रिट पड़ गई. उसके बाद फिर सीबीआई के आदेश हुए. सीबीआई जांच के बाद सभी पुलिसवालों को 2016 में उम्र कैद की सजा सुनाई गई और जुर्माना भी लगाया गया. लेकिन 15 दिसम्बर को लखनऊ बेंच ने जुर्माने को कम कर दिया और उम्रकैद हटा के सात साल की सजा सुना दी. हम इससे संतुष्ट नहीं हैं हम इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट अपील करेंगे.
दहशत फैलाने के लिए हुआ था एनकाउंटर
कहलो ने बताया कि जो लोग उस दिन पीलीभीत के एनकाउंटर में मारे गए, उनका कोई क्राइम का इतिहास नहीं था. हां, जो लोग पंजाब के थे उन पर मुकदमे थे. सभी को आतंकवादी बनाकर मार दिया. इन लोगों ने इनाम के लालच और सिक्ख समुदाय में दहशत बनाने के लिए एकाउंटर किया था. यह बात सुप्रीम कोर्ट में साबित हो गई थी कि इन लोगों ने फर्जी एनकाउंटर किया था.
एनकाउंटर में मारे गए नीरेन्द्र सिंह की पत्नी जसबन्त कौर ने अपना दर्द बयां किया. उन्होंने बताया कि मेरी सांस उस बस में थी, मेरे पति को उन्हीं के सामने उतार ले गए और मेरी सास को एक गुरुद्वारे में छोड़ दिया गया. मेरे पति को पुलिस वाले अपने साथ ले गए और उनको मार दिया. उनके मरने की खबर हमें अखबार से मिली. मारते नहीं उनको पकड़ कर जेल में डाल देते तो ठीक रहता. लेकिन उनको वहां पर मारना नहीं चाहिए था. वह अकेले घर में कमाने वाले थे. मैं भी बीमार हूं, कैसे जी रही हूं मैं जानती हूं. मेरे बच्चे इधर उधर प्राइवेट नौकरी करते हैं. मुझे कुछ ज्यादा याद नहीं है. लेकिन कुछ साल पहले फैसला आया था तो उसमें उन पुलिसवालों को उम्र कैद हुई थी. लेकिन अब बता रहे हैं कि उनकी सजा कम कर दी गई. यह मेरे साथ न्याय नहीं हो रहा है और हम लोगों को सजा मिल रही है.
गुरुवार को आए फैसले से पहले 2016 में लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने इन सभी आरोपी पुलिस बालो उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उस फैसले से सिक्ख समुदाय के लोग सन्तुष्ट थे, लेकिन उस फैसले के बदले जाने से नाराज हैं. आज से 31 साल पहले 12 जुलाई 1991 सिख तीर्थयात्री बिहार में पटना साहिब और महाराष्ट्र में नांदेड साहब के दर्शन कर वापस लौट रहे थे. तभी उन्हें पुलिस ने बस से उतारा और पीलीभीत में तीन अलग-अलग जंगलों में ले जाकर आतंकवादी कहते हुए 10 सिख यात्रियों को गोली मार दी थी. उसे एनकाउंटर का रूप दे दिया. लेकिन बस तीर्थयात्रियों की थी, इसलिए इस घटना के बाद सिख समुदाय के लोगों में नाराजगी देखी गई थी. बताया जा रहा है यह एनकाउंटर सिर्फ सम्मान और पुरस्कार पाने के लिए किया गया था.