Jalaun: दिल्ली की प्रसिद्ध कुतुबमीनार के बारे में तो आपने बखूबी सुना होगा, लेकिन क्या कभी आपने 'लंका मीनार' के बारे में सुना है. यदि नहीं तो आज हम आपको उसी मीनार के बारे में बताने जा रहे हैं. दरअसल यह मीनार रावण को समर्पित है. मीनार के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण कराने वाला शख्स रामलीला में रावण की भूमिका निभाता था. रावण की दीवानगी उस पर इस कदर चढ़ी कि उसने रावण की याद में उसकी मीनार ही बनवा डाली.
मीनार के अंदर बने हैं रावण के पूरे परिवार के चित्र
उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में बुंदेलखंड के प्रवेश द्वार कालपी में स्थित इस मीनार के अंदर रावण के पूरे परिवार के चित्र बनाए गए हैं. यह भी कहा जाता है कि दिल्ली की कुतुबमीना के बाद यही सबसे ऊंची मीनार है. इसका निर्माण कराने वाला शख्स रामलीला में रावण की भूमिका निभाता था. उसे रावण से इतना लगाव था कि उसने लंका नाम से ही मीनार का निर्माण कराया. यह मीनार अपनी अजीब मान्यता की वजह से एक टूरिस्ट स्पॉट में बदल चुकी है. लोग दूर-दराज से इस मीनार को देखने के लिए आते हैं. बता दें कि यह वही कालपी है जहां वेदव्यास ने रामायण लिखी थी.
बेहद दिलचस्प है इसके निर्माण की कहानी
लंका मीनार के निर्माण की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है. जानकारी के अनुसार, यह मीनार 1857 में मथुरा प्रसाद नामक एक व्यक्ति द्वारा बनवाई गई थी. मथुरा प्रसाद ने रावण की याद में इस मीनार का निर्माण करवाया था. इसलिए इसका नाम ‘लंका मीनार’ रखा गया. मथुरा प्रसाद एक कलाकर के रूप में ज्यादातर रावण का किरदार करते थे. ऐसा कहा जाता है कि रावण की भूमिका ने उनपर इतनी बड़ी छाप छोड़ी कि उन्होंने रावण की याद में एक मीनार बनवा डाली. लंका मीनार को बनाने में 20 साल का समय लगा था. इस मीनार की ऊंचाई 210 फीट है, मीनार को बनाने में उस समय लगभग 2 लाख रुपए का खर्चा आया था.
मीनार में एक साथ ऊपर नहीं जा सकते भाई बहन
मीनार में कुंभकरण और मेघनाथ की बड़ी मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं. कुंभकरण की मूर्ती 100 फीट ऊंची है, तो वहीं मेघनाथ की मूर्ती 65 फीट की है. यहां आप भगवान शिव के साथ-साथ चित्रगुप्त की मूर्ति को भी देख सकते हैं. इसके अलावा यहां 180 फीट लंबी नाग देवता की मूर्ती को भी स्थापित किया गया है. बता दें कि रावण शिव का बड़ा भक्त था. लंका मीनार को लेकर एक अजीब मान्यता ये भी है कि यहां मीनार में भाई-बहन एक साथ ऊपर नहीं जा सकते हैं. असल में, मीनार के ऊपर जाने के लिए 7 परिक्रमाओं को पूरा करना पड़ता है, जिसे भाई-बहन द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता. यही कारण कि मीनार के ऊपर एक साथ भाई बहनों का जाना मना है. स्थानीय लोग भी इस मान्यता का सालों से पालन करते आ रहे हैं.
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