UP Election 2022: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की तारीखों का ऐलान हो चुका है. ऐसे में सभी पार्टियों पर प्रेशर बना हुआ है और प्रतिस्पर्धा लगातार बनी हुई है. कई नेता अपनी पार्टियों को छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए हैं और ऐसे ही सहारनपुर की राजनीति में भी एक नया बदलाव देखने को मिला है. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व विधायक इमरान मसूद अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.


क्यों है कांग्रेस के लिए धक्का?


इमरान मसूद को गांधी परिवार का करीबी माना जाता था. इरमान की छवि एक बाहुबली नेता के तौर पर होती है, लेकिन इसके बावजूद वो कांग्रेस में न सिर्फ बने रहे, बल्कि गांधी परिवार के करीबी माने जाते रहे, ऐसे में उनका कांग्रेस छोड़ना पार्टी के लिए एक बड़ा धक्का है.


कौन है इमरान मसूद?


इमरान मसूद, पश्चिमी यूपी की राजनीति का एक बड़ा नाम हैं जो पूर्व केंद्रीय मंत्री काजी रशीद मसूद के भतीजे हैं. समाजवादी पार्टी से इमरान का रिश्ता पुराना है. वो कांग्रेस में आने से पहले लगतार 10 साल तक सपा में रह चुके थे. मसूद परिवार का समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ हमेशा घनिष्ठ संबंध रहा है. इमरान मसूद के चाचा और संरक्षक रशीद  मसूद मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव दोनों के करीबी थे. इसलिए, अगर मसूद सपा में शामिल हो रहें हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.


क्या है राजनीतिक पृष्ठभूमि?


इमरान मसूद कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व विधायक हैं. सहारनपुर नगर पालिका के भी चेयरमैन रह चुके हैं. 2007 विधानसभा चुनाव में मुज्ज़फराबाद से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ते हुए तत्कालीन कैबिनेट मंत्री जगदीश राणा को हराकर विधायक बने. इमरान मसूद उसके बाद कोई भी इलेक्शन नहीं जीत पाए हैं. 2012 विधानसभा चुनाव से पहले ही इमरान मसूद सपा से कांग्रेस में शामिल हो गए और नकुड सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में डॉक्टर धर्म सिंह सैनी के खिलाफ चुनाव लड़ा. जिसमें उन्हें हार मिली


10 साल बाद हो रही है सपा वापसी


इमरान ने साल 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के राघव लखन पाल को हरा नहीं पाए. 2017 में सपा और कांग्रेस का गठबंधन होने के बावजूद इमरान मसूद एक बार फिर नकुड विधानसभा क्षेत्र से भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़ रहे डॉक्टर धर्म सिंह सैनी से नजदीकी मुकाबले में हार गए थे. 2019 लोकसभा चुनाव में सपा, रालोद और बसपा का गठबंधन था. समीकरणों के हिसाब से मुस्लिम मतदाताओं में गठबंधन की लहर थी, लेकिन इसमें भी इमरान को हार का सामना करना पड़ा था.


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