अयोध्या, एबीपी गंगा। उत्तर प्रदेश के सभी धार्मिक स्थलों के संरक्षण को लेकर प्रदेश सरकार लगातार योजनाबद्ध तरीके से कार्य कर रही है। इसे लेकर अयोध्या के कुंड, घाट सहित अन्य सभी स्थलों के सौंदर्यीकरण पर वृहद योजना के अनुरूप कार्य किया जा रहा है।
विश्व हिंदू परिषद व संतों ने अयोध्या में स्थित श्रीराम नाम अंकित दुर्लभ वृक्ष के संरक्षण की मांग उठाई है। इस पेड़ को लोग रामनामी पेड़ के नाम से भी जानते हैं। आसपास के लोगों का दावा है कि बड़े लंबे समय से यह पेड़ यहां पर है और उसपर अपने आप राम नाम शब्द उभर जाता है
राम से बड़ा राम का नाम इसी को चरितार्थ करते हुए अयोध्या की पवित्र भूमि पर कदम प्रजाति का एक ऐसा चमत्कारी वृक्ष है जिसकी डालियों और टहनियों पर भगवान राम का नाम अंकित है। राम की नगरी अयोध्या की पंचकोसी परिक्रमा क्षेत्र की पावन परिधि में स्थित यह वृक्ष लोगों की आस्था का केंद्र है और स्थानीय लोग इस वृक्ष की पूजा-अर्चना करते हैं।
अयोध्या से सटे ग्रामीण क्षेत्र भीखी का पुरवा से कुछ दूरी पर गोरखपुर-अयोध्या हाईवे पर मुख्य सड़क मार्ग से किनारे मौजूद गांव तकपुरा पूरे निरंकार के एक खेत में मौजूद इस वृक्ष के बारे में आसपास के लोग अच्छी प्रकार से जानते हैं और इसे रामनामी वृक्ष कहकर पुकारा जाता है। कदम प्रजाति के इस वृक्ष की जड़ और डालियों पर भगवान राम का नाम प्राकृतिक रुप से अंकित है और समय के साथ-साथ राम नाम की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
स्थानिय लोगों के अनुसार दशकों पहले इस वृक्ष पर भगवान राम का नाम लिखा हुआ देखा गया धीरे-धीरे ये संख्या बढ़ती चली गई और आज भी बढ़ती जा रही है। जब आसपास के लोगों को राम नाम के इस चमत्कार का पता चला तो उन्होंने इस वृक्ष को आस्था के रूप से देखना शुरू किया और इसकी नित्य पूजा अर्चना आरंभ कर दी। वर्ष में एक बार इस वृक्ष के पास मेला लगता है।
यंहा पर नियुक्त पुजारी वृक्ष की पूजा करते हैं इसके अतिरिक्त पितृ विसर्जन के दिन भी इस वृक्ष के नीचे मेले का आयोजन होता है। मान्यता है की जो व्यक्ति इस वृक्ष की पूजा करता है उसके सभी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट दूर हो जाते हैं और वे सुखी जीवन यापन करता है।
विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने रामनामी वृक्ष के संरक्षण की मांग सरकार से की है। विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता ने कहा कि जिस तरह अयोध्या में दार्शनिक स्थलों का संरक्षण किया जा रहा है उसी तर्ज पर इस पेड़ का भी संरक्षण होना चाहिए। इस पर शोध होना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को इस वृक्ष के बारे में पता होना चाहिए।