Uttarakhand Government big Decision on Bureaucracy: वैसे तो शासन सत्ता में कई बड़े फैसले होते है लेकिन कुछ निर्णय व्यापक संदेश देने का काम करते है. मसलन, बेलगाम नौकरशाही पर लगाम लगाने की कवायद भर से राहत महसूस होती है. उत्तराखंड में एक ताजा फैसले को ही ले लीजिए, जो कानून देश में पहले से है, जिस कानून को अमूमन तौर पर वो ही लोग भूल गए जिन्हें लागू करना है. उत्तराखंड की नई सरकार ने हाकिमों को उस कानून की याद दिलाई तो प्रदेश की नौकरशाही में जलजला आ गया, इतना ही नहीं इसकी धमक दिल्ली तक गई.
होगी कार्रवाई
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ये निर्णय लिया है कि यदि कोई अधिकारी महत्वपूर्ण पद पाने के लिए अपने उच्चाधिकारियों पर राजनीतिक दबाव डलवाएगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी. मुख्यमंत्री का इशारा मिलते ही मुख्य सचिव सुखबीर सिंह संधू ने ऑल इंडिया सर्विस रूल 1968 का नियम 18 खोजकर कार्मिक विभाग को निर्देशित किया कि इस व्यवस्था को भारतीय प्रशासनिक सेवा के समस्त अधिकारीयों को याद दिलाया जाए. साथ ही आदेश जारी किए जाएं यदि कोई भी आईएएस अफसर महत्वपूर्ण पद पाने के लिए अपने उच्चाधिकारियों पर राजनीतिक दबाव डलवाता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी. उक्त अफसर की चरित्र पंजिका में प्रविष्टि दर्ज की जाएगी. इसके बाद अब प्रदेश की अफसरशाही में इस आदेश को लेकर सन्नाटा पसर गया है. अब अधिकारियों में राजनितिक सिफारिश करवाने की हिचकिचाहट देखने को मिल रही है.
आदेश आईपीएस आईएफएस के लिए क्यों नहीं
वास्तव में इस आदेश का असर जिलों तक दिखा, नौकरशाही की निचले स्तर तक चूल हिल गई. लेकिन, ये आदेश आईपीएस और आईएफएस के लिए क्यों नहीं जारी हुआ ये चर्चा का विषय है. क्योंकि, ऑल इंडिया सर्विस रूल 1968 के जिस नियम 18 से आईएएस की मुश्कें कसने का प्रयास किया गया है उसी कानून से आईपीएस और आईएफएस भी गवर्न होते हैं.
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