नई दिल्ली। देशभर में नागरिकता कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। राजधानी दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हिंसा की आग यूपी, बंगाल तक पहुंच चुकी है। आम लोगों के मन में इस कानून को लेकर तमाम शंकाएं हैं। हम आपको बताते हैं कि आखिर में इस कानून के तहत क्या बात कही गई है। भारत में बाहर से आनेवाले नागरिकों के संबंध में इस कानून के अंतर्गत क्या नियम है। सीएए और एनआरसी को लेकर विपक्ष, मुस्लिम संगठन और कई कैंपसों में छात्र इसका विरोध कर रहे हैं। आइये जानते हैं सीएए क्या है।


क्या है नागरिकता संशोधन कानून


नागरिकता संशोधन कानून यानी Citizenship Amendment Act। कोई भी एक्ट या कानून बनने से पहले यह बिल के रूप में जाना जाता है। इसी तरह सीएए संसद के दोनों सदनों में पास होने से पहले सीएबी यानी (Citizenship Amendment Bill)था। सीएए और सीएबी की बात करें तो संसद में पास होने और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद ये बिल नागरिक संशोधन कानून (CAA, Citizenship Amendment Act) यानी एक्ट बन गया है। नागरिकता संशोधन कानून में यह सहुलियत दी गई है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।


विरोध प्रदर्शन की वजह


इस एक्ट की मदद से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। लेकिन इस एक्ट में इस्लाम धर्म के लोगों को शामिल नहीं किया गया है। नागरिकता संशोधन बिल के कानून बनने के बाद अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के वो लोग जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 तक भारत में प्रवेश कर लिया था, वे सभी भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगे। इस कानून के विरोधियों का कहना है कि इसमें सिर्फ गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता देने की बात कही गई है, इसलिए ये धार्मिक भेदभाव वाला कानून है जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।


CAA से कौन लोग बाहर हैं?


इस कानून से असम के आदिवासी इलाके और मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के अलावा अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम व नागालैंड को बाहर रखा गया है।


क्या भारत की बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ प्रत्यावर्तन संधि है?


प्रत्यावर्तन किसी को वापस भेजने या किसी को उनके मूल स्थान पर वापस भेजने की प्रक्रिया है। एक बार जब सरकार अवैध प्रवासियों (अधिनियम के अनुसार) की राष्ट्रीयता निर्धारित करती है, तो आदर्श रूप से उन्हें अपने मूल देश वापस भेजा जाना चाहिए। हालांकि भारत की बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से ऐसी कोई संधि नहीं है.


नागरिकता कानून, 1955 के अनुसार अवैध प्रवासी कौन हैं?


वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश करने वाले लोग या वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करने वाले वो लोग जो स्वीकृत अवधि के बाद भी वापस नहीं गए हैं, वे सभी अवैध प्रवासी हैं.


नए कानून के मुताबिक अवैध प्रवासी कौन हैं?


अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आने वाले सभी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई जो दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। उनके अलावा वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश करने वाले लोग या वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करने वाले वो लोग जो स्वीकृत अवधि के बाद भी वापस नहीं गए हैं, वे सभी अवैध प्रवासी हैं।


इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन क्यों हो रहा है?


विरोधियों को कहना है कि ये कानून संविधान की मूल भावना और सेकुलरिज्म के खिलाफ है। इस कानून में देश में रह रहे अवैध प्रवासियों को धार्मिक आधार पर बांटा जा रहा है। ये देश में अवैध रूप से रह रहे छह धर्मों के लोगों को तो शरणार्थी मानकर नागरिकता देने की बात करता है लेकिन ऐसे मुस्लिमों को घुसपैठिया बताता है। इस कानून को एनआरसी की तैयारी भी बताया जा रहा है। भविष्य में एनआरसी लाने पर सिर्फ मुस्लिमों को ही अपनी नागरिकता साबित करनी होगी जबकि बाकी छह धर्मों को इससे छूट मिलेगी। वे मुस्लिम जो भारत की नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे उन्हें असम की तर्ज पर डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा।