साल 2019 अपने आखिरी चरण में है। अब नया साल यानी 2020 लग जाएगा। ये ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा लोग इसी पद्धति का इस्तेमाल करते हैं। आपको बता दें कि ग्रेगोरियन कैलेंडर अंग्रेजों की संस्कृति का हिस्सा है। अंग्रेजों ने दुनिया के ज्यादातर हिस्सों पर राज किया है, इसी वजह से ग्रेगोरियन कैलेंडर को प्राथमिकता दी जाती है। जिस तरह से अंग्रेजों के तिथि के गणना के लिए अलग कैलेंडर है ठीक उसी तरह हर देश में संस्कृति के अनुसार अलग-अलग कैलेंडर होते हैं। एक आकड़ों के अनुसार दुनियाभर में कुल 96 तरह के कैलेंडर चलन में हैं। अपने देश भारत की बात की जाये तो यहां पर कुल 36 कैलेंडर थे, जिनमें से मात्र 12 कैलेंडर ही अब चलन में हैं। हम आपको बतातें हैं अलग अलग कैलेंडर और उनका इतिहास।


भारत में कैलेंडर का इतिहास
भारत में कुल 12 कैलेंडर चलन में हैं, जिनमें सबसे ज्यादा प्रचलित शक संवत और संवत विक्रम है। संवत विक्रम के जनक सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य माने जाते हैं। यह संवत 57 ईसा पूर्व उज्जयनी में शकों को पराजित करने की याद में शुरू किया गया था। इस कैलेंडर में कालगणना सूर्य और चंद्र के आधार पर की जाती है। बता दें कि इस कैलेंडर के अनुसार नया साल चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र नवरात्र के साथ प्रारंभ होता है।


शक संवत
शक संवत भारत सरकार का राष्ट्रीय संवत है। यह संवत 78 ई में शुरू हुआ था। 22 मार्च 1957 को भारत सरकार ने मामूली फेरबदल कर शक संवत को राष्ट्रीय संवत के रूप में अपनाया। इस संवत के अनुसार भी प्रथम माह चैत्र और अंतिम माह फाल्गुन होता है।


हिजरी
हिजरी कैलेंडर इस्लाम धर्म के संस्कृति का हिस्सा है। इस कैलेंडर में कालगणना चंद्रमा के आधार पर की जाती है। हिजरी कैलेंडर की शरुआत 62 ई में पैगंबर मोहम्मद के मक्का से मदीना जाने यानी हिजरत करने के दिन हुई। इस कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम माह के पहले दिन नया साल मनाया जाता है।


भारत के वो कैलेंडर जो अब चलन में नहीं
कृष्ण संवत, स्वयंभू मनु संवत्सर, युधिष्ठिर संवत, सप्तऋषि संवत, ध्रुव संवत, गुप्त संवत, कश्यप संवत, क्रोंच संवत, वैवस्वत मनु संवत, कार्तिकेय संवत, वैवस्वत यम संवत, इक्क्षवाकु संवत, परशुराम संवत, लौकिकध्रुव संवत, जयाभ्युद संवत, भटाब्ध संवत (आर्य भट्ट), जैन युधिष्ठिर शकसंवत, शिशुनाग संवत, नंद शक, क्षुद्रक संवत, चाहमान शक, श्रीहर्ष शक, शालिवाहन शक, वल्भिभंग संवत, कल्चुरी या चेदी शक।


दुनिया में अलग-अलग तारीखों पर नया साल
श्रीलंका के सिंहली और तमिल हिंदू 13-14 अप्रैल को अपने लोगों के साथ नए साल का जश्न मनाते हैं। वहीं कंबोडिया और वियतनाम में एक विशेष समुदाय के लोग 13 से 15 अप्रैल के बीच नया साल मनाते हैं। नए साल के अवसर पर ये लोग शुद्धि समारोह में भाग लेते हैं और धार्मिक स्थानों पर जाते हैं। म्यांमार में भी नया साल 13 से 16 अप्रैल के बीच मनाया जाता है। यहां नए साल के उत्सव को तिजान कहते हैं, जो तीन दिन चलता है। रूस, मैसेडोनिया, सर्बिया और यूक्रेन में पूर्वी रूढ़िवादी चर्च के लोग ग्रेगोरियन न्यू ईयर की तरह जूलियन न्यू ईयर 14 जनवरी को मनाते हैं।


अन्य देशों में नया साल
चीन का कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित होता है। यहां हर साल 21 जनवरी से 20 फरवरी के बीच अलग-अलग तारीखों पर नया साल मनाया जाता है। चीन में नए साल के लिए आधिकारिक तौर पर सात दिनों की छुट्टियां होती है। वहीं इथियोपिया में 12 सितंबर को नया साल मनाया जाता है। उत्तरी इराक, उत्तर-पूर्वी सीरिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की और उत्तर-पश्चिमी ईरान में 1 अप्रैल को नया साल मनाया जाता है।