नई दिल्ली, पं.शशिशेखर त्रिपाठी। परिक्रमा या प्रदक्षिणा एक संस्कृत शब्द है और इसका अर्थ है पवित्र स्थानों या मूर्तियों के आसपास फेरे लगाना जिसे हिंदू जैन बौद्ध और भी धर्मों के लोग मानते हैं। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि किसकी कितनी बार प्रदक्षिणा करनी चाहिए। पंडित शशिशेखर त्रिपाठी आज प्रदक्षिणा से जुड़ी जानकारी आपको बता रहे हैं।


किसकी कितनी बार करें प्रदक्षिणा


हिंदू धर्म में प्रदक्षिणा एक कार्य है, जिसे हम पूजा अनुष्ठानों के दौरान गोलाकार में चला जाता है। गर्भ ग्रह पवित्र अग्नि नदियों पेड़ों पौधों मूर्तियों अन्य पवित्र वस्तुओं और स्थानों के आस-पास प्रदक्षिणा लगाई जाती है।प्रदक्षिणा में व्यक्ति का दाहिना अंग देवता की ओर होता है। इसे प्रायः  परिक्रमा के नाम से जाना जाता है। यह माना जाता है कि एक पवित्र स्थान के आसपास गोलाकार घूमना उस पवित्र स्थान में बहने वाली ऊर्जा को अधिकतम मात्रा में पाने का आसान तरीका है, उसकी पॉजिटिव एनर्जी हमको प्राप्त होती है।


‘शब्दकल्पद्रुम’ में कहा गया है कि देवता को उद्देश्य करके दक्षिणावर्त  भ्रमण करना ही प्रदक्षिणा है। किस देवता को कितनी प्रदक्षिणा करनी चाहिए, इस संदर्भ में ‘कर्म लोचन’ नामक ग्रन्थ में कुछ प्रकार लिखा गया है...




  • दुर्गा जी की एक बार प्रदिक्षणा करनी चाहिए

  • सूर्य भगवान की सात बार प्रदिक्षणा करनी चाहिए

  • गणेश जी की तीन बार प्रदिक्षणा करनी चाहिए

  • विष्णु भगवान की चार बार प्रदिक्षणा करनी चाहिए

  • शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए।


शास्त्र का आदेश है कि शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोम सूत्र  का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। सोम सूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि भगवान को चढ़ाया हुआ जल जिस ओर गिरता है, वहीं सोम सूत्र का स्थान होता है। अन्य स्थानों पर मिलता है कि तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढके हुए सोम सूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता, लेकिन ‘शिवस्यार्थ प्रदक्षिणा’ का मतलब शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए।




  • जिन देवताओं के प्रदक्षिणा का विधान प्राप्त नहीं होता, उनकी तीन प्रदक्षिणा की जा सकती है।

  • जो लोग तीन प्रदक्षिणा साष्टांग प्रणाम करते हुए करते हैं, वे दस अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त करते हैं।

  • जो लोग सहस्रनाम का पाठ करते हुए प्रदक्षिणा करते हैं, वे सप्त द्वीपवती पृथ्वी की परिक्रमा का पुण्य प्राप्त करते हैं।

  • बृहन्नारदीय में लिखा गया है कि जो भगवान विष्णु की तीन परिक्रमा करते हैं, वे सभी प्रकार के पापों से विमुक्त हो जाते हैं।


इसका मतलब यह समझ में आता है कि कामना के अनुसार भी प्रदक्षिणा की संख्या का विचार किया गया है। विष्णु स्मृति में  कहा गया है कि एक हाथ से प्रणाम करना, एक प्रदक्षिणा किये गये पुण्य की हानि करता है। परिक्रमा करते समय उन देवी देवता के नाम का जाप करते चलें।

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