पंडित शशिशेखर त्रिपाठी 


रोहिणी, कृतिका और अश्विनी नक्षत्र के बाद बात मृगशिरा नक्षत्र की। तो चलिए सबसे पहले इस नक्षत्र का परिचय जान लेते हैं। मृगशिरा नक्षत्र को मृगशीर्ष या मृगाशिर के नाम से भी पुकारते हैं। इनका अर्थ मृग यानी हिरन का सिर है। यह नक्षत्र वृष और मिथुन दोनों राशियों को जोड़ने वाला नक्षत्र है। जिन लोगों की वृष या मिथुन राशि है उनका यह नक्षत्र हो सकता है। इसके देवता चंद्रमा है। चंद्रमा को पुराणों में सोम भी कहा जाता है सोम अर्थात अमृत।


मृग की सबसे बड़ी क्वालिटी होती है उसकी चपलता यानी उसका भागना। इनको पकड़ना 'सरल सिंह' के लिए भी सरल नहीं होता है। इसी चपलता के गुणों की वहज से मारीछ ने सीता के अपरहरण में रावण को सहयोग देने के लिए स्वर्ण मृग का रूप रखा था। चलिए अब इस नक्षत्र में जो लोग जन्म लेते हैं उनके गुणों के विषय में प्रकाश डालते हैं।



गुण


इस नक्षत्र के लोगों का शरीर सुडौल होता है।


यह लोग ओवर पजेसिव और ओवर अलर्ट होते हैं। जीवन में यह गुण कहीं लाभ देता तो कहीं हानि।


इस नक्षत्र में जन्मे लोगों के अंदर कम्यूनिकेशन के गुण जन्मजात होते हैं। यह हर कार्य को बहुत ही सुंदरता से पूरा कर लेते हैं।


यह अपने कार्य में रोज कुछ न कुछ नया करने का प्रयोग करते हैं। एक जैसा निरंतर काम से इनको ऊब होने लगती है।


इनके अंदर तकनीकी ज्ञान भी पर्याप्त मात्रा में होता है और टेक्निकल बातों को बहुत ही रुचि लेकर जल्दी समझ भी लेते हैं।


यह दूसरों की सेवा और समाजिक कार्यों को करने में सदैव तैयार रहते हैं।


इस नक्षत्र के लोगों में इंट्यूशन क्षमता भी होती है यह आने वाले संकट को पहले ही भांप लेते हैं।


इस नक्षत्र के लोग किसी भी काम को पूरी मेहनत से करते हैं। कार्य पूर्ण करने के पश्चात इनको ब्रेक की आवश्यकता होती है।


सावधानी


मृगशिरा नक्षत्र वालों को अपने स्टेटस पर घमंड नहीं करना चाहिए।


एक बात नोट कर लीजिए कि कभी किसी की बुराई नहीं करनी है। यह आपके लिए जीवन का सूत्र होना चाहिए।


इनको अपने बॉस, सरकार एवं सरकारी अधिकारियों को नाराज नहीं करना चाहिए। अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।



कैसे बढ़ाएं पावर


मृगशिरा नक्षत्र वालों के लिए वनस्पति बहुत अनिवार्य है क्योंकि हिरन बिना वनस्पति के जीवित ही नहीं रह सकता है। यहीं नहीं कई बार सिंह के आखेट से वह वस्तपतियों की झाड़ियों के कारण ही प्राण बचा पाता है। मृगशिरा नक्षत्र वालों की वनस्पति है खैर। खैर यानी कत्थे का पेड़। इसका पौराणिक नाम है खादिर। खैर के पेड़ से कत्था बनाता है और कत्था पान में चूने की तीक्षणता को कम करता है। कत्थे का प्रयोग कई दवाओं में भी किया जाता है। यह पूरे भारत में पाया जाता है। इसको लगाने से मृगशिरा वालों को बहुत लाभ होता है और उनका नक्षत्र भी बलवान हो जाता है। कत्थे का उपयोग हार्मोनल डिसऑर्डर, पेट, दस्त, पाइल्स, मलेरिया संबंधित रोगों के लिए बहुत ही उपयोगी है। ध्यान रहे कि खैर का पेड़ इनके माध्यम से कटना नहीं चाहिए।