ज्योतिष में योग व्यक्ति के पूरे जीवन को प्रभावित करता है। कुंडली में योग एक खास जगह में ग्रहों के संयोजन से बनते हैं। कई योग जातक को भाग्यशाली बना देते हैं। कई बार आपने देखा होगा कि किसी व्यक्ति को रातों रात सफलता मिल जाती है। आखिर ऐसा क्यों होता है और इसके पीछे क्या कारण होता है। इसी सवाल का जवाब हमें ज्योतिष शास्त्र में मिलता है। ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक जब किसी की कुंडली में राजयोग बनता है तो व्यक्ति फर्श से उठकर अर्श पर पहुंचा जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं कुंडली में बनने वाले कुछ ऐसे ही राजयोग के बारे में।



गज केसरी राजयोग
कुंडली में अगर गुरु बृहस्पति चंद्रमा से केन्द्र भाव में हो और किसी क्रूर ग्रह से संबंध नहीं रखता हो तो कुंडली में गज-केसरी राजयोग बनता है। इस राजयोग के कारण व्यक्ति धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में कामयाबी हासिल करता है। ऐसे व्यक्ति सरकारी सेवाओं में उच्च पद पर बैठते हैं।



पाराशरी राजयोग
कुंडली में जब केन्द्र भावों का संबंध त्रिकोण भाव से हो तो ऐसी स्थिति में पाराशरी राजयोग का निर्माण होता है। दशावधि में इस योग के प्रभाव से आप धनी और समृद्धिशाली बनेंगे।



नीच भंग राजयोग
यदि कोई ग्रह अगर अपनी नीच राशि में बैठा है या शत्रु भाव में है तो आम सोच यह होती है कि जब उस ग्रह की दशा अंतर्दशा आएगी तब वह जिस घर अथवा भाव में बैठा है उस घर से संबंधित विषयों में नीच अर्थात अशुभ फल प्रदान करेगा, लेकिन ऐसा नहीं होता है। कभी-कभी अन्य ग्रहों तथा भाव के अनुसार ऐसे ग्रह भी राजयोग की तरह ही फल देता हैं। इसी कारण इस ग्रह से बनने वाले योग को नीच भंग राजयोग कहा जाता हैं। जिस राशि में नीच का ग्रह बैठा हो, उस राशि का स्वामी ग्रह उसे देख रहा हो अथवा जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी अपने ही घर में बैठा हो तो अपने आप ही ग्रह का नीच भंग हो जाता है



उभयचरी राजयोग
कुंडली में यदि चंद्रमा के अतिरिक्त राहु-केतु, सूर्य से दूसरे या बारहवें घर में स्थित हों तो कुंडली में उभयचरी योग का निर्माण होता है। इस राजयोग वाले व्यक्ति का भाग्य बड़ा प्रबल होता है। ऐसे जातक स्वभाव से हंसमुख और बुद्धिमान होते हैं। ये बड़ी से बड़ी चुनौतियों को आसानी से पार कर जाते हैं।



धन योग
कुंडली में पहला, दूसरा, पांचवां, नौवां और ग्यारहवां भाव धन देने वाले हैं। अगर इनके स्वामियों में युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन संबंध बनता है तो इस स्थिति में धन योग का निर्माण होता है। इस राजयोग से व्यक्ति का आर्थिक जीवन बेहद समृद्धिशाली बनता है।



कब बनता है राजयोग
जब तीन या तीन से अधिक ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में होते हुए केंद्र में स्थित हों।
जब कोई ग्रह नीच राशि में स्थित होकर वक्री और शुभ स्थान में स्थित हो।
तीन या चार ग्रहों को दिग्बल प्राप्त हो।
चन्द्र केंद्र स्थित हो और गुरु की उस पर दृष्टि हो।
नवमेश व दशमेश का राशि परिवर्तन हो।
नवमेश नवम में व दशमेश दशम में हो।
नवमेश व दशमेश नवम में या दशम में हो।