शिव सर्वत्र हैं। शिव आदि देव हैं। शिव हर मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है। शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, कल्याणकारी या शुभकारी। शिव पुराण में भगवान शिव को खुश करने के लिए बहुत सारे मंत्र बताए गए हैं। हम आपको एक ऐसा महामंत्र बताने वाले हैं, जिसके जाप से संसार का हर रोग और कष्ट दूर हो जाता है।



शिव को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र सबसे प्रभावशाली मंत्र है। इस मंत्र का जाप करना फलदायी होता है। महामृत्युंजय मंत्र जाप करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का बेहद प्रिय है। माना जाता है कि इस मंत्र के जाप से मौत भी टल जाती है। तो चलिए आपको महामृत्युंजय मंत्र से जुड़ी जरूरी बातें बताते हैं।


महामृत्युंजय मंत्र


ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥



भावार्थ : हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो जाए, उसी उसी तरह से जैसे एक खर बूजा अपनी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है।


महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय इसके उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मंत्र का जाप करते समय एक निश्चित संख्या का निर्धारण करें। हर दिन इसकी संख्या बढ़ाते जाएं, लेकिन कम न करें।
जाप करते समय कोई आसन जरूर बिछा लें।
जाप करते समय पूर्व दिशा की तरफ मुख करें।
मंत्र का जाप करने के लिए एक जगह तय कर लें रोजाना जगह न बदलें।
मंत्र का जाप करते समय अपने मन को कहीं दूसरी तरफ न भटकने दें।
जितने दिनों तक आप इस मंत्र का जाप करें उतने दिन मांसाहार या शराब का सेवन न करें।
मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करें।
मंत्र का जाप करते समय धूप जलाएं।
मंत्र का जाप करते वक्त आलस्य या उबासी को आस पास न भटकने दें।


होता है लाभ


इस मंत्र का 1100 बार जाप करने पर भय से छुटकारा मिलता है।
11000 बार मंत्र का जाप करने पर रोगों से मुक्ति मिलती है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप सवा लाख बार करने से पुत्र और सफलता की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही अकाल मृत्यु से भी बचाव होता है।



शिव का स्वरूप


भगवान शिव का स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी। शिव जो धारण करते हैं उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं।


जटाएं : शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।
चंद्रमा : चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है।
त्रिनेत्र : शिव की तीन आंखें हैं। इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव की ये आंखें सत्व, रज, तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान, भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु, पाताल (तीनों लोकों) का प्रतीक हैं।
सर्पहार : सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक जीव है, जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है।
त्रिशूल : शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
डमरू : शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्मा रूप है।
मुंडमाला : शिव के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है।
छाल : शिव ने शरीर पर व्याघ्र चर्म यानी बाघ की खाल पहनी हुई है। व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
भस्म : शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है।
वृषभ : शिव का वाहन वृषभ यानी बैल है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ धर्म का प्रतीक है। महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं।