भगवान काल भैरव के बारे में ये बातें नहीं जानते होंगे आप, जानें- क्या है काल और भैरव का मतलब
मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी के रूप में मनाई जाती है। काल भैरव को बीमारी, भय, संकट और दुख को हरने वाला स्वामी माना जाता है। इनकी पूजा से हर तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।
नई दिल्ली, एबीपी गंगा। काल भैरव को भगवान शिव का रूप माना जाता हैं। मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन किए जाने वाले विशेष उपाय अवश्य सिद्ध होते हैं। काल भैरव दो शब्दों से मिलकर बना है। काल और भैरव। काल का अर्थ मृत्यु, डर और अंत। भैरव का मतलब है भय को हरने वाला यानी जिसने भय पर जीत हासिल किया हो। काल भैरव की पूजा करने से मृत्यु का भय दूर होता है और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
काल भैरव की कथा
श्रेष्ठता को सिद्ध करने की लड़ाई आज से नहीं बल्कि युगों-युगों से चली आ रही है। मनुष्य तो क्या देवता तक इससे नहीं बचे हैं। बहुत समय पहले भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि त्रिदेवों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया है कि उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है। विवाद को सुलझाने के लिये समस्त देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई। सभा ने काफी मंथन करने के पश्चात जो निष्कर्ष दिया उससे भगवान शिव और विष्णु तो सहमत हो गये लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए।
सभा में भगवान शिव को अपमानित करने का भी प्रयास किया जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गये। भगवान शंकर के इस भयंकर रूप से ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई। सभा में उपस्थित समस्त देवी देवता शिव के इस रूप को देखकर थर्राने लगे। काल भैरव जो कि काले कुत्ते पर सवार होकर हाथों में दंड लिए अवतरित हुए थे और ब्रह्मा जी पर प्रहार कर उनके एक सिर को अलग कर दिया। यहीं से काल भैरव की उत्पति मानी जाती है।
जानें- कब है काल भैरव अष्टमी मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी के रूप में मनाई जाती है। 19 नवंबर को कालभैरव अष्टमी है। काल भैरव को बीमारी, भय, संकट और दुख को हरने वाला स्वामी माना जाता है। इनकी पूजा से हर तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं। काल भैरव के आठ रूप माने गए हैं जो इस प्रकार हैं। असितांग भैरव, चंड भैरव, रूरू भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव और संहार भैरव।
काल भैरव के मंदिर
वैसे तो भारत में अनेक स्थानों पर काल भैरव के मंदिर हैं लेकिन इनमें से कुछ मंदिर बेहद प्रसिद्ध हैं। तो चलिए आपको ऐसे ही कुछ मंदिरों के बारे में बताते हैं।
काल भैरव मंदिर, काशी काशी के काल भैरव मंदिर विशेष मान्यता है। यह काशी विश्वनाथ मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद जो भक्त इनके दर्शन नहीं करता है उसकी पूजा सफल नहीं मानी जाती है।
काल भैरव मंदिर, उज्जैन काशी के बाद भारत में दूसरा प्रसिद्ध काल भैरव का मंदिर उज्जैन में है। यहां ऐसी परांपरा है कि लोग भगवान काल भैरव को प्रसाद को रुप में केवल शराब ही चढ़ाते हैं।
घोड़ाखाड़ बटुक भैरव मंदिर, नैनीताल नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुक भैरव मंदिर भी प्रसिद्ध है। इसे गोलू देवता के नाम से भी जाना जाता है।
बटुक भैरव मंदिर,नई दिल्ली बटुक भैरव मंदिर दिल्ली के विनय मार्ग पर स्थित है। बाबा बटुक भैरव की मूर्ति यहां पर विशेष प्रकार से एक कुएं पर विराजित है। यह प्रतिमा पांडव काशी से लाए थे। बटुक भैरव मंदिर पांडव किला दिल्ली में बाबा भैरव बटुक का मंदिर प्रसिद्ध है। इस मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा की गई थी।कैसे करें काल भैरव की पूजा
तांत्रिक भी काल भैरव की उपासना करते हैं। मान्यता के अनुसार इनकी उपासना रात्रि में की जाती है। रात भर जागरण कर भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। काल भैरव के वाहन काले कुत्ते की भी पूजा होती है। कुत्ते को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। पूजा के समय काल भैरव की कथा भी सुनी या पढ़ी जाती है। अगले दिन सुबह नदी अथवा किसी तीर्थ स्थल में नहाकर श्राद्ध व तर्पण भी किया जाता है। इसके बाद भैरव को राख अर्पित की जाती है। मान्यता है कि भैरव की पूजा करने वाला निर्भय हो जाता है। उसे किसी से भी डरने की आवश्यकता नहीं होती। उसके समस्त कष्ट बाबा भैरव हर लेते हैं।