नई दिल्ली, एबीपी गंगा। मंगल को क्रूर ग्रह भी माना जाता है। यह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है, इसलिए मेष और वृश्चिक राशि के लोगों को क्रोध अधिक आता है। वैदिक ज्योतिष मंगल ग्रह को ऊर्जा का कारक माना जाता है। मंगल ग्रह के कारण ही कुंडली में मांगलिक दोष होता है। पौराणिक कथा के अनुसार मंगल को भगवान शिव के अंश माना जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि मंगल ग्रह की उत्पति कैसे हुई।
मंगल देव की उत्पत्ति से जुड़ी कथा
स्कंद पुराण के अनुसार, एक समय उज्जैन में अंधक नाम का दैत्य राज्य करता था। उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक था। कहते हैं एक बार कनक ने युद्ध के लिए इन्द्र को ललकारा। इंद्र ने युद्ध में कनक का वध कर दिया। अंधकासुर अपने पुत्र के वध की खबर को सुनकर अपना आपा खो बैठा, उसने इंद्र को मारने का मन बना लिया। अंधकासुर शक्तिशाली था। इंद्र उसकी शक्ति के आगे कहीं नहीं टिकते थे इसलिए प्राणों की रक्षा के लिए भगवान शिव की शरण में आ पहुंचे।
इंद्र ने भगवान शिव से प्रार्थना की और अंधकासुर से बचने के लिए अभय दान मांगा। इंद्र की व्यथा देख भगवान शिव ने उन्हें अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा। इसके बाद भगवान शिव और अंधकासुर के बीच घमासान युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी। इसी पसीने की बूंद से मंगल का जन्म हुआ। इसलिए मंग्रह का स्वभाव क्रूर है और गुस्सा शीघ्र ही आ जाता है।
अंगारक, रक्ताक्ष और महादेव पुत्र, इन नामों से स्तुति कर मंगल को ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित किया, इसके बाद उसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने मंगलेश्वर नाम के उत्तम शिवलिंग की स्थापना की। वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है। मंगल ग्रह की शांति के लिए यहां उनकी पूजा आराधना की जाती है।