देखते ही देखते जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया था श्रीप्रकाश शुक्ला, इश्क के चक्कर में गई जान
श्रीप्रकाश शुक्ला को न तो किसी का डर था और न ही अंजाम की फिकर। माना तो ये भी जाता है कि यदि श्रीप्रकाश शुक्ला का वर्चस्व कायम रहता तो शायद यूपी में और किसी माफिया का जन्म ही नहीं होता।
लखनऊ, एबीपी गंगा। उसकी किस्मत तो जैसे पहले ही लिखी जा चुकी थी। वो तो बस कलाकार थो जो अपने किरदार को अंजाम दे रहा था। महज 13-14 साल की उम्र में ही उसकी आंखों में खौफ नजर आता था। डर क्या होता है उसे मालूम ही नहीं था। यूपी में वो दौर 90 के दशक का था। इसी वक्त अपराध की दुनिया में एक ऐसे नौजवान की दस्तक होती है जो देखते ही देखते पूरे प्रदेश में खौफ का दूसरा नाम बन जाता है। खौफ का ये नाम था 25 साल का शार्प-शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला।
पहलवान से बन गया बदमाश
श्रीप्रकाश और उसके पास मौजूद एके-47 से खाकी भी खौफ खाती थी। इस माफिया को पकड़ने के लिए ही यूपी में एसटीएफ का गठन हुआ था। सिर्फ 5 साल में श्रीप्रकाश ने जुर्म की दुनिया में ताबड़तोड़ वारदातों को अंजाम देकर नंबर वन बदमाश का तमगा हासिल कर लिया। शुक्ला को न तो किसी का डर था और न ही अंजाम की फिकर। माना तो ये भी जाता है कि यदि श्रीप्रकाश शुक्ला का वर्चस्व कायम रहता तो शायद यूपी में और किसी माफिया का जन्म ही नहीं होता। चलिए आपको पहलवान से बदमाश बनने वाले इसी शख्स की कहानी बताते हैं।
20 साल की उम्र में किया पहला मर्डर
श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के ममखोर गांव में हुआ था। उसके पिता शिक्षक थे। श्रीप्रकाश गांव में पहलवानी करता था। साल 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले राकेश तिवारी नाम के शख्स की हत्या कर दी थी। 20 साल के युवक श्रीप्रकाश के जीवन का यह पहला जुर्म था। ऐसा कहा जाता है कि इस मर्डर के बाद वो बैंकॉक भाग गया, लेकिन पैसे की तंगी के चलते वह ज्यादा दिन वहां टिक नहीं सका और फिर भारत लौट आया। भारत लौटने के बाद श्रीप्रकाश ने मोकामा, बिहार का रुख किया और सूरजभान गैंग में शामिल हो गया।
बहुबली नेता की हत्या
भारत लौटने के बाद श्रीप्रकाश ने वो किया जो शायद और किसी के बस की बात नहीं थी। जुर्म की दुनिया में वो न तो रुका न थमा और न ही कभी थका। साल 1997 में लखनऊ में बाहुबली नेता वीरेन्द्र शाही की श्रीप्रकाश शुक्ला ने हत्या कर दी। इस हत्याकांड के बाद तो यूपी में श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक कायम हो गया। कहा तो ये भी जाता है कि श्रीप्रकाश हत्या करने के बाद खुश होता था।
मंत्री की हत्या
श्रीप्रकाश शुक्ला को खौफ की दुनिया में असली शौहरत बिहार के मंत्री हत्याकांड से मिली। श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से भून दिया था। श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ लाल बत्ती कार में आया और एके-47 राइफल से हत्याकांड को अंजाम देकर फरार हो गया था।
शुक्ला को पकड़ने के लिए बनी थी एसटीएफ
श्रीप्रकाश को रोक पाना पुलिस के नामुमकिन साबित हो रहा था। सरकार और पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुके शुक्ला को खात्मे का प्लान बनाया जाने लगा। लखनऊ सचिवालय में यूपी के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी की एक बैठक हुई। इसमें अपराधियों से निपटने के लिए स्पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई। 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई। इस फोर्स का पहला टास्क था श्रीप्रकाश शुक्ला को पकड़ना फिर चाहे वो जिंदा हो या मुर्दा।
ले ली सीएम की 'सुपारी'
श्रीप्रकाश ने यूपी पुलिस की नींद तब उड़ा दी जब उसने उस समय सूबे के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या का सुपारी ली थी। 5 करोड़ में सीएम की हत्या का सौदा तय हुआ था। गोरखपुर का नौसिखिया लड़का देखते ही देखते 'करोड़पति सुपारी-किलर' और यूपी पुलिस के लिए 'चुनौती' बन गया था।
इश्क में था गिरफ्तार
श्रीप्रकाश शुक्ला की जिंदगी में प्यार भी था। एक गर्लफ्रेंड थी जो दिल्ली में रहती थी। श्रीप्रकाश शुक्ला उससे बात करता था। एसटीएफ को इस बात की जानकारी हो गई थी और श्रीप्रकाश को भी सच जैसे मालूम था। लेकिन खतरे को महसूस करते हुए भी वह प्रेमिका से बात करने के लालच में पीसीओ से फोन करता था।
आतंक खत्म, कहानी शुरू
23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को मिली कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। श्रीप्रकाश शुक्ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है। उस वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी शक नहीं हुआ कि एसटीएफ उसका पीछा कर रही है, उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सूनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ की टीम ने अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया। श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया। इस तरह जुर्म के इस बादशाह की कहानी खत्म हो गई।
आज भी होते हैं चर्चे
श्रीप्रकाश शुक्ला की मौत के बाद एसटीएफ को जांच में पता चला कि कई नेताओं और पुलिस के आला अधिकारियों से उसकी दोस्ती थी। कई पुलिस वाले उसके लिए खबरी का काम करते थे, जिसकी एवज में उन्हें श्रीप्रकाश से पैसा मिलता था। कई नेता और मंत्री भी उसके सहयोगी थे। यूपी के एक मंत्री का नाम तो उसके साथ कई बार जोड़ा गया था।
एके-47 रखता था श्रीप्रकाश
माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला अपने पास हर वक्त एके-47 राइफल रखता था। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक श्रीप्रकाश के खात्मे के लिए पुलिस ने जो अभियान चलाया उस पर लगभग एक करोड़ रुपये खर्च हुए थे, यह अपने आप में इस तरह का पहला मामला था जब पुलिस ने किसी अपराधी को पकड़ने के लिए इतनी बड़ी रकम खर्च की थी। श्रीप्रकाश शुक्ला की मौत के बाद उसका खौफ भले खत्म हो गया था लेकिन जरायम की दुनिया में उसके चर्चे आज भी होते हैं।