टांगीनाथ धाम झारखंड मे गुमला शहर से करीब 75 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच स्थित है। इस जगह भगवान परशुराम का तप स्थल है। पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान परशुराम ने यहां शिव की घोर उपासना की थी। यहां पर आज भी भगवान परशुराम का फरसा जमीन में गड़ा हुआ है।
फरसे की होती है पूजा
झारखंड में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ा। धाम में इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है और यही वजह है की यहां श्रद्धालु फरसे की पूजा के लिए आते हैं और भगवान शिव के इस मंदिर को टांगीनाथ धाम के नाम से पुकारते हैं।
फरसे पर नहीं लगती जंग
आश्चर्य की बात कि जमीन पर गड़े इस फरसे में कभी जंग नहीं लगता। खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात, का कोई असर इस फरसे पर नहीं पड़ता है। कहा जाता है टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं। टांगीनाथ धाम का प्राचीन मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका है लेकिन आज भी इस पहाड़ी में प्राचीन शिवलिंग बिखरे पड़े हैं।
ये है कथा
जब राम राजा जनक द्वारा सीता के लिये आयोजित स्वयंवर मे भगवान शिव का धनुष तोड़ देते है तो परशुराम क्रोधित होते हुए वहा पहुंचते हैं और राम को शिव का धनुष तोड़ने के लिए भला-बुरा कहते हैं। सब कुछ सुनकर भी राम मौन रहते है, यह देख कर लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वो परशुराम से बहस करने लग जाते है। इसी बहस के दौरान जब परशुराम को यह ज्ञात होता है कि राम भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं तो लज्जित होते हैं और पश्चाताप करने के लिये घने जंगलों के बीच आ जाते है। यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर और बगल मे अपना फरसा गाड़ कर तपस्या करते हैं। यही जगह आज का टांगीनाथ धाम है।
यह बात कोई नहीं जानता
सावन व महाशिवरात्रि में यहां हजारों की संख्या में शिवभक्त आते हैं कुछ लोग टांगीनाथ धाम में गड़े फरसे को भगवान शिव का त्रिशुल बताते हैं। इसके पीछे भी एक बड़ी ही रोचक कथा है। कहते हैं शिव इस क्षेत्र के पुरातन जातियों से संबंधित थे। शनिदेव के किसी अपराध के लिए शिव ने त्रिशूल फेंककर वार किया। त्रिशूल डुमरी प्रखंड के मझगांव की चोटी पर आ धंसा। लेकिन उसका अग्र भाग जमीन के ऊपर रह गया। त्रिशूल जमीन के नीचे कितना गड़ा है, यह कोई नहीं जानता।
कई प्रकार शिवलिंग हैं मौजूद
टांगीनाथ को 'टांगीनाथ महादेव' और 'बाबा टांगीनाथ' के नाम से भी जाना जाता है। यहा छोटे एवं बड़े कई प्रकार के लगभग 60 शिवलिंग हैं। दरवाजे के बाहरी भाग पर भगवान सूर्य देव की मूर्ती है। एक त्रिकोणीय झंडा दरवाजे के बायीं दिशा में और छत के ऊपर लगा रहता है। मन्दिर के अन्दर एक लिंग है, जिसका व्यास पांच फीट है। यह एक अर्ध के साथ स्थापित है।
चुकानी पड़ी कीमत
कहा जाता है कि एक बार क्षेत्र में रहने वाले कुछ लोगों ने लोहा प्राप्त करने के लिए फरसे को काटने प्रयास किया था। ये लोग फरसे को तो नहीं काट पाये लेकिन उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी। मौत के डर से लोहार जाति के लोग क्षेत्र छोड़कर चले गए।