कानपुर, एबीपी गंगा। बीजेपी द्वारा उठाया गया 'तीन तलाक' का मुद्दा राज्यसभा की अड़चनों से कानून भले ही न बन पाया हो, लेकिन पार्टी के लिए शुभ रहा। इस बार के लोकसभा चुनाव के परिणामों ने गवाही दी है कि इस मुद्दे के जरिये भाजपा ने मुस्लिमों के घर में एंट्री तो कर ही दी। पार्टी कुछ हद तक बुर्कानशीनों का वोट हासिल करने में कामयाब रही है।


नहीं लगते थे बीजेपी के बस्ते


कानपुर लोकसभा क्षेत्र में सीसामऊ और कैंट ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां कई बूथ सिर्फ मुस्लिम आबादी वाले हैं। वहां किसी दौर में बीजेपी के बस्ते तक नहीं लगते थे। पार्टी प्रयासरत रही, लेकिन वहां वोटों का जुगाड़ न हुआ। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद बड़ा दांव चला गया। सरकार ने तीन तलाक कानून बनाने के लिए पहल की। देशभर में इसे लेकर तरह-तरह की प्रक्रियाएं हुईं।


शुरू हुई समीक्षा


प्रगतिशील मुस्लिम संगठनों और तलाक पीड़िताओं ने समर्थन में आवाज बुलंद की, लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने की वजह से सरकार तीन तलाक कानून को अमल में नहीं ला सकी। माना जा रहा था कि इससे मुस्लिमों के बीच बीजेपी कुछ पैठ जरूर बनाएगी। अब लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम आने के बाद इसकी समीक्षा शुरू हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव में 130 बूथों पर बीजेपी उम्मीदवार डॉ. मुरली मनोहर जोशी को 10 से भी कम वोट मिले जबकि पांच बूथों पर स्थिति शून्य की रही थी।



सुधरी है पार्टी की स्थिती


सीसामऊ और कैंट क्षेत्र में जिन बूथों पर पिछले चुनाव में बीजेपी शून्य या एक-दो वोट पर सिमटी थी, वहां खाता खुला है। तमाम बूथों पर जहां कांग्रेस को सैकड़ों मत मिले हैं, वहां एक से दो दर्जन वोट बीजेपी के सत्यदेव पचौरी को भी मिले हैं। बीजेपी संगठन का मानना है कि यह वोट मुस्लिम महिलाओं का है। उन्होंने बीजेपी के तीन तलाक की खिलाफत के निर्णय को पसंद करते हुए वोट दिया है। पार्टी को उम्मीद है कि भविष्य में यह स्थिति और सुधरेगी। वहीं इन क्षेत्रों में वोट मिलने की वजह गैस व बिजली कनेक्शन, शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास पाने वाले लाभार्थियों का समर्थन भी शामिल है।