रायबरेली: 98 साल का एक बुजुर्ग पिता महज इसलिए चने की दुकान लगाता है जिससे कि उसका बोझ उसके बच्चों पर ना पड़े. इस अवस्था में चना बेचते हुए देखकर बुजुर्ग को जिलाधिकारी ने उन्हें अपने कार्यालय बुलाया और नकदी के साथ-साथ सरकारी योजनाओं का लाभ भी तत्काल प्रभाव से दिलवाते हुए आशीर्वाद लिया. जिससे गदगद बाबा ने खुले मन से मुख्यमंत्री और जिलाधिकारी को दुआएं दी. मामला हरचंदपुर कस्बे का है जहां बाबा चने की दुकान लगाकर अपना जीविका चलाते हैं.


बच्चों पर ना पड़े बोझ
हरचंदपुर के रहने वाले विजय पाल सिंह 98 साल की उम्र में चने कि दुकान लगाकर धनार्जन करते हैं और उससे अपना पेट पालते हैं. विजय पाल सिंह के दो बेटे हैं और दोनों अपने-अपने परिवार के साथ रोजी-रोटी कमा रहे हैं. लेकिन, विजय पाल सिंह महज इसलिए चने की दुकान लगाते हैं जिससे कि उनका बोझ उनके बच्चों पर ना पड़े और वो अपना जीविकोपार्जन खुद कर सकें.


बाबा को बुलवाया कार्यालय
चने की दुकान लगाते जब जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव ने बुजुर्ग को देखा तो वे रुक ना सके और बाबा के पास पहुंचकर हालचाल लिया. पूरे सम्मान के साथ उन्हें अपने कार्यालय बुलवाया. कार्यालय में वैभव श्रीवास्तव ने 11 हजार नकदी, छड़ी, शाल सहित शौचालय और पात्र गृहस्थी का राशन कार्ड भी बनवाकर तत्काल दिया.


बाबा ने दिया आशीर्वाद
बाबा के पहुंचते ही जिलाधिकारी ने उपजिलाधिकारी अंशिका दीक्षित सहित अन्य अधिकारियों को कार्यालय में तलब किया और आनन-फानन में प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया. इस पल से गदगद हुए बाबा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव को धन्यवाद देते हुए वहां मौजूद सभी लोगों को अपना आशीर्वाद दिया.


कहानी सुनकर भावुक हुए लोग
एक पिता के लिए उसके बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं चाहे वो कितने बड़े क्यों न हो जाएं. पिता अपने बच्चों के दुख-दर्द को समझता है और अंतिम समय तक अपना सहयोग भी देता है. विजय पाल सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो 98 साल की उम्र में चने की दुकान इसलिए लगाते हैं क्योंकि उनके बच्चे खुद अपना परिवार पालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जिसने भी विजय पाल की कहानी सुनी वो भावुक हो गया.


प्रेरणा का स्रोत हैं बाबा
जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव ने बताया कि बाबा चने की दुकान लगाते हैं. जिन्हें बुलाकर चर्चा की गई. इनको प्रधानमंत्री आवास पहले से मिला हुआ है. यहां पात्र गृहस्थी का कार्ड और शौचालय के कागजात मुहैया कराए गए और जो भी अन्य सहयोग हो सकता है वो किया जाएगा. बाबा हम सब के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. बाबा किसी मजबूरी में चने की दुकान नहीं लगाते हैं बल्कि वो ऐसा इसलिए करते हैं कि आत्मनिर्भर बने रहें, जो एक अच्छा संदेश है. हम सभी लोग बाबा के आशीर्वाद के आकांक्षी हैं.



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