मेरठ. यूपी के मेरठ से 40 किमी दूर परीक्षितगढ़ और सांपों का अनोखा रहस्य है. माना जाता है कि आज भी किसी व्यक्ति के आसपास भी अगर कहीं सांप होता है तो खुद ही इसका अहसास हो जाता है. अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परीक्षित और सांपों के बीच यहां हैरान करने वाली कहानी आज भी सुनाई जाती है. इतिहासकार भी परीक्षितगढ़ के इस रहस्य को लेकर हैरान रह जाते हैं. रहस्य से पहले हम आपको यहां की मान्यताओं के बारे में बताते हैं.


क्या है मान्यता?
मान्यता है कि अगर परीक्षितगढ़ में या फिर यहां मौजूद श्रृंगी ऋषि आश्रम में आसपास भी कहीं सांप होता है तो इसका अहसास इंसान को खुद ही हो जाता है. मान्यता ये भी है कि यहां राजा परीक्षित के पुत्र जान्मेजय का नाम लेने भर से ही सांप कई मीटर पीछे लौट जाता है. श्रृंगी ऋषि आश्रम के पुजारी तो यहां तक कहते हैं कि अगर कोई यहां सांप की पूंछ पर भी पैर रख दे तो वो नहीं काटता.


किला परीक्षितगढ़ राजा परीक्षित के नाम पर पड़ा है. यह कहानी राजा परीक्षित की सर्पदंश से हुई मृत्यु से शुरू होती है. राजा परीक्षित उत्तरा और अभिमन्यु के पुत्र थे जिनको कृष्ण ने अश्वत्थामा द्वारा चलाये गए ब्रम्हास्त्र से बचाया था. परीक्षित का पालन-पोषण विष्णु और कृष्ण द्वारा किया गया था.


क्यों पड़ा परीक्षित नाम?
परीक्षित का नाम परीक्षित इसीलिए पड़ा क्योंकि वह सभी के बारे में यह परीक्षण करते थे कि वह कहीं उस आदमी से अपनी मां के गर्भ में ही तो नहीं मिला था. सांप की कहानी की शुरुआत तब होती है जब राजा परीक्षित जंगल का भ्रमण करते हुए ऋषि शमीक की कुटिया में पहुंचे थे.
परीक्षित बहुत प्यासे थे और उन्होंने ध्यान लगाये हुए ऋषि शमीक को कई बार बड़े आदर और भाव से जगाना चाहा, पर ऋषि का ध्यान ना टूटा. अंत में परेशान होकर उन्होंने एक मरे हुए सांप को ऋषि के ऊपर डाल दिया था. इस वाकये के बाद ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने परीक्षित को श्राप दिया कि वह 7वें दिन ही एक सांप द्वारा दंश किये जायेंगे और उनकी मृत्यु हो जायेगी.


श्राप के बाद परीक्षित ने पुत्र को बनाया राजा
इसी श्राप को सुन कर राजा परीक्षित ने अपने पुत्र को राजा बना दिया और अगले सात दिन तक ऋषि शुकदेव जो कि ऋषि वेद व्यास के पुत्र थे उनसे भागवत पुराण सुनी. भागवत कथा सुनने के बाद परीक्षित ने ऋषि की पूजा करने के बाद कहा कि उनको अब सर्पदंश से कोई डर नहीं है क्योंकि उन्होंने आत्म मन और ब्रम्ह को जान लिया है, लेकिन ठीक 7वें दिन तक्षक सांप ऋषि का वेश बना कर राजा से मिलने आया और उनको डस लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी.


श्रृंगी ऋषि आश्रम में आज भी जो मूर्ति श्रृंगी ऋषि की है उसमें सांप लटका हुआ नजर आता है. यहां आज भी वो पेड़ मौजूद है जिसके नीचे बैठकर श्रृंगी ऋषि तपस्या किया करते थे. यहां आज भी हवन कुंड मौजूद है जहां वो तपस्या किया करते थे और यहां आज भी वो कुआं मौजूद हैं जिसका जल ऋषि पिया करते थे.


ये भी पढ़ें:



अयोध्या: दीपोत्सव को यादगार बनाने की तैयारी, दीप जलाने में अवध विश्वविद्यालय रच सकता है इतिहास


यूपी: अच्छी खबर, दिवाली से पहले मुख्यमंत्री योगी की सरकारी कर्मचारियों को बड़ी सौगात, किया बोनस का एलान