डाकू गब्बर सिंह बॉलीवुड फिल्म शोले का ये वो किरदार है जो आज भी जीवंत है। गब्बर सिंह को शायद हम फिल्म शोले की वजह से ही जानते हैं लेकिन सच्चाई इससे अलग है। गब्बर सिंह कोई फिल्मी डाकू नहीं बल्कि एक असली डाकू था। इसकी दहशत चंबल में करीब एक दशक तक रही थी। एक वक्त था जब गब्बर सिंह पुलिस के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया था।
गबरा के गब्बर बनने की कहानी
कुख्यात डाकू गब्बर सिंह का जन्म 1926 में भिंड जिले के डांग गांव में हुआ था। गब्बर सिंह को लोग पहले गबरा के नाम से जानते थे। एक वक्त ता जब गबरा गांव का एक साधारण युवक हुआ करता था लेकिन बाद में उसने बीहड़ की तरफ रुख किया। गबरा ने 1955 में अपना घर और गांव छोड़ दिया था और डाकू कल्याण सिंह गुर्जर के गैंग में शामिल हो गया था। यहीं से शुरू हुई थी गबरा के गब्बर बनने की कहानी।
गब्बर ने बनाया गिरोह
गब्बर सिंह ने गैंग में शामिल होने के बाद कई वारदातों को अंजाम दिया। कल्याण सिंह का साथ गब्बर को अधिक दिनों तक नहीं भाया। कुछ वक्त बाद ही गब्बर सिंह ने अपना अलग गिरोह बना लिया और चंबल की घाटियों में अपनी धाक जमा ली।
गब्बर का आतंक
50 के दशक में गब्बर का नाम आतंक का पर्याय बनता जा रहा था। लोग उसके नाम से खौफ खाते थे। पुलिस महकमा भी उसकी हरकतों से परेशान था। भिंड, ग्वालियर, इटावा, ढोलपुर में गब्बर का खौफ इस कदर था कि लोग उसके बार में बात तक नहीं करते थे।
काट देता था नाक
एक बार किसी तांत्रिक ने डाकू गब्बर सिंह से कहा कि अगर वह अपनी कुल देवी को 116 लोगों की कटी हुई नाक कान चढ़ाएगा तो पुलिस या कोई और उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। इसके बाद तो गब्बर सिंह को मानो नाक काटने की धुन सवार हो गई। गब्बर सिंह ने सैंकड़ों लोगों की नाक काटी जिसमें अधिकतर पुलिस वाले शामिल थे।
सबसे बड़ा डाकू, सबसे बड़ा इनाम
गब्बर आतंक का दूसरा नाम बन गया था। पुलिस तमाम कोशिशों के बाद भी उसपर लगाम नहीं लगा पा रही थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश समेत तीन राज्यों की पुलिस उसे तलाश रही थी। पुलिस के हाथ खाली थे और गब्बर खूंखार होता जा रहा था। आखिरकार पुलिस ने डाकू गब्बर सिंह पर 50 हजार रुपये का नकद इनाम रखा। 50 के दशक में यह किसी भी अपराधी के सिर पर रखा गया सबसे बड़ा इनाम था।
गब्बर सिंह पर किताब
केएफ रुस्तमजी 50 के दशक में मध्य प्रदेश पुलिस के महानिरीक्षक थे। रुस्तमजी रोजाना डायरी लिखा करते थे। डाकू गब्बर सिंह के कई किस्से रुस्तमजी की डायरी में दर्ज थे। इन्हीं किस्सों को बाद में आईपीएस अधिकारी पीवी राजगोपाल ने किताब की शक्ल दी। किताब का नाम था 'द ब्रिटिश, द बैंडिट्स एंड द बॉर्डरमैन' राजगोपाल ने यह किताब रुस्तमजी की इजाजत और उन्हीं के मार्गदर्शन में लिखी थी।