लखनऊ, एबीपी गंगा। यूपी की सियासत में बाहुबलियों का बोलबाला हमेशा से रहा है। कई बार तो चुनाव में बाहुबलियों पर दांव भी लगाया जाता है। अपराधी छल और बल से चुनाव जीत जाते हैं और यहीं से शुरू होता है अपाराध और सियासत का गठजोड़। यूपी की सियासी जमीन से ऐसे अपराधी नेता बने हैं जिन्होंने लंबे अरसे तक सूबे की राजनीति को प्रभावित किया है।
यूं तो एक वक्त यूपी अपराध की नर्सरी रहा है और इस नर्सरी से निकलने वाले अपराधियों ने सियासी चोला भी पहना। लेकिन अगर पूर्वांचल की बात न करें तो फिर सब बेमानी है। यूं तो पूर्वांचल में कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपराध की दुनिया से सियासत की तरफ रुख किया लेकिन एक नाम जो सबसे अहम है वो मुख्तार अंसारी है। तो चलिए गैंगस्टर सीरीज की इस कड़ी में हम आपको मुख्तार और उसके इतिहास के बारे में बताते हैं।
मुख्तार अंसारी का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले में ही हुआ। उसके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे, जबकि उसके पिता एक कम्यूनिस्ट नेता थे। घर में सियासी माहौल तो मुख्तार ने बचपन से देखा। परिवार राजनिति में था तो मुख्तार का हौसला भी बढ़ा और वह हमेशा से निडर और दबंग की छवि में ही नजर आया।
दरअसल, अपराध में मुख्तार की एंट्री जमीनों पर वर्चस्व कायम करने को लेकर शुरू होती है। 1970 में सरकार पिछड़े हुए पूर्वांचल पर मेहरबान हुई। विकास के लिए कई योजनाएं शुरु की गईं। इसी होड़ में गाजीपुर में दो गैंग उभरे। 1980 में सैदपुर में एक प्लॉट को हासिल करने के लिए साहिब सिंह के नेतृत्व वाले गिरोह का दूसरे गिरोह के साथ झगड़ा हुआ। हिंसा इतनी बढ़ गई कि इसे रोक पाना लगभग नामुमकिन साबित हो रहा था। गैंग की कमान ब्रजेश सिंह के हाथ में थी। ब्रजेश का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था और तभी इस गैंग का सामना मुख्तार अंसारी से हुआ और यहीं से शुरू होती है ब्रजेश सिंह और मुख्तार की दुश्मनी की कहानी।
साल 1988 में पहली बार हत्या के एक मामले में मुख्तार का नाम आया था। हत्या के मामले में नाम आने के बाद मुख्तार के नाम की चर्चा होने लगी। 1990 का दौर मुख्तार अंसारी के लिए बड़ा अहम रहा। अब तक मुख्तार अपराध की दुनिया में कदम रख चुके थे। देखते ही देखते पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में मुख्तार खौफ का दूसरा बन गया। मुख्तार के सामने कोई नहीं था लिहाजा पूर्वांचल में लंबे समय तक मुख्तार के नाम की ही डंका बजा।
अपराध में लगभग डेढ़ दशक बिताने के बाद मुख्तार ने राजनीति की तरफ रुख किया। साल 1996 में मुख्तार अंसारी ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। सत्ता की ताकत मिलने के बाद मुख्तार ब्रिजेश सिंह के लिए बड़ा खतरा बन गए। साल 2002 आते आते मुख्तार और ब्रजेश सिंह के बीच छिड़ी कोल्ड वार गैंगवार में बदल गई। ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया। दोनों तरफ से हुई फायरिंग में मुख्तार के तीन लोग मारे गए और ब्रजेश सिंह घायल हो गया। इस गैंगवार के बाद खबर फैल गई ब्रजेश सिंह की मौत हो गई है जिसके बाद मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरकर सामने आए।
मुख्तार ज्यादा दिनों तक पूर्वांचल में अकली ताकत बनकर नहीं रह पाए। एक बार फिर ब्रजेश सिंह की वापसी होती है और फिर पूर्वांचल गैंगवार की आग में जलने लगता है। ब्रजेश के पास सियासी ताकत नहीं थी लिहाजा उसने अंसारी का मुकाबला करने के लिए भाजपा नेता कृष्णानंद राय के चुनाव अभियान का समर्थन किया।
आपराधिक जंग अब सियासी लड़ाई में बदल चुकी थी। गैंगवार से ज्यादा चुनावी हार जीत का महत्व था। माना जाता है कि मुख्तार अंसारी ने गाजीपुर और मऊ क्षेत्र में चुनाव के दौरान जीत सुनिश्चित करने के लिए मुस्लिम वोट बैंक का सहारा लिया। इसके बाद पूर्वांचल में कई आपराधिक घटनाएं हुईं। ऐसे ही एक दंगे के बाद मुख्तार अंसारी पर लोगों को हिंसा के लिए उकसाने के आरोप लगा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
मुख्तार अंसारी जेल में बंद था और इसी दौरान भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई। हमलावरों ने 6 एके-47 राइफलों से 400 से ज्यादा गोलियां चलाई थीं। कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी के दुश्मन ब्रजेश सिंह ने पूर्वांचल छोड़ दिया। 2008 में ब्रजेश को उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया था।
2007 में मुख्तार अंसारी ने बसपा का दामन थाम लिया लेकिन ये साथ ज्यादा दिनों तक नहीं चला। 2010 में अंसारी पर राम सिंह मौर्य की हत्या का आरोप लगा। इसी हत्याकांड के बाद मुख्तार और उनके भाई अफजाल को बसपा से निष्कासित कर दिया गया।
बसपा से निष्कासित होने के बाद दोनों भाइयों को अन्य राजनीतिक दलों ने भी अस्वीकार कर दिया। तब तीनों अंसारी भाइयों मुख्तार, अफजाल और सिब्गतुल्लाह ने खुद की राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया।
मुख्तार की सियासत में नरमी और गर्मी का दौर जारी था। इसी दौरान पता चला कि इंसारी की हत्या के लिए एक बड़ी साजिश रची गई थी। जिसका खुलासा 2014 में हुआ। ब्रजेश सिंह ने अंसारी को मारने के लिए लंबू शर्मा को 6 करोड़ रुपये की सुपारी दी थी। ये खुलासा लंबू शर्मा की गिरफ्तारी के बाद हुआ था।
अंसारी के आपराधिक और सियासी सफर के दौरान उनपर कई दाग भी लगे। अक्टूबर 2005 में मऊ में भड़की हिंसा में भी उनका नाम सामने आया। आखिरकार मुख्तार ने गाजीपुर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और तभी से वो जेल में बंद हैं। पूर्वांचल का नाम लेते ही मुख्तार की शख्सियत सामने आती है। कहा तो ये भी जाता है कि कई लोग मुख्तार को किसी मसीहा से कम नहीं मानते तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए मुख्तार दुशमन नंबर-1 हैं।