वाराणसी, नीतीश कुमार पांडे। आने वाली 31 जुलाई को उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती है तैयारियां तमाम हैं और दावे भी तमाम है लेकिन इन दावों की हकीकत कुछ और है।हकीकत से हम आपको रूबरू कराते हैं।
आम घरों जैसा हो गया है मुंशी जी का पैतृक आवास
कभी जिसके उपन्यासों ने साहित्य को अलग दिशा दी, आज उन्हीं उपन्यास सम्राट का पैतृक गांव और आवास उपेक्षा का शिकार है। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का पैतृक आवास जिसे कभी म्यूजियम के तौर पर विकसित करने के दावे किए गए थे आज भी आम आवास जैसा खाली पड़ा है। हां जब जयंती आती है तो रंग रोगन होता है और आज भी वही हो रहा है।
पुस्तकालय में मुंशी प्रेमचंद की किताबों का टोटा
उपन्यास सम्राट के पैतृक आवास के नजदीक स्थित बना पुस्तकाल अपने हाल पर रो रहा है। मुंशी जी की मात्र दो सौ किताबें और वो भी बिना किसी रख-रखाव के। यहां आने वाले न सिर्फ प्रशासनिक अमले को कोसते हैं बल्कि उस व्यवस्था पर आक्रोश भी जाहिर करते हैं जो साहित्य की अनदेखी इस कदर कर रहा है।
धूल फांक रहा मुंशी प्रेमचंद मेमोरियल
जिसका निर्माण मुंशी जी की हस्ती को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हुआ है जिसमें लाइब्रेरी और अन्य सुविधाएं मिलनी थीं इतना ही नहीं मुंशी जी की लेखनी पर शोध की योजना थी। बीएचयू से संबद्ध प्रेमचंद मेमोरियल रिसर्च इंस्टिटीयूट धूल फांक रहा है आलम ये है कि यहां आज तक नियुक्ति नहीं हो पायी है। ऐसे में मुंशी जी को जानने और पढ़ने वालों में निराशा है। मुंशी जी के स्मारक के केयर टेकर सुरेश चंद्र दुबे भी अपनी निराशा जाहिर करते हुए मांग कर रहे हैं कि व्यवस्था सुचारू होनी चाहिए।