गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर पूरे देश में मशहूर और इसके साथ ही मकर संक्रांति के समय यहां लगने वाला मेला भी प्रसिद्ध है. हर साल यहां पर दूर दराज से लोग खिचड़ी चढ़ाने आते हैं. पूरे महीने यह मेला लगा रहता है. 


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां के पीठाधीश्वर हैं, इसलिए हर साल सबसे पहली खिचड़ी वहीं चढ़ाते हैं, उसके बाद से कोई भी चढ़ाता है. सदियों से चली आ रही खिचड़ी चढ़ाने की इस परंपरा का पालन लोग पूरे नियम से करते हैं. 


कैसे शुरू हुई खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा


एक समय की बात है कि भिक्षाटन करते हुए हिमाचल के कांगड़ा जिले के ज्वाला देवी मंदिर पहुंचें, जहां देवी प्रकट हुई और गोरक्षनाथ को भोजन के लिए आमंत्रित किया, जब गोरक्षनाथ ने तापसी भोजन को देखा तो उन्होंने कहा कि मैं भिक्षा में मिले चावल , दाल को ही खाता हूं, जिस पर ज्वाला देवी ने कहा कि मैं चावल दाल पकाने के लिए पानी गरम करती हूं, आप भिक्षाटन पर चावल और दाल लेकर आइए, जिसके बाद गोरक्षनाथ भिक्षाटन करते हुए गोरखपुर पहुंचे, 


जब वह गोरखपुर पहुंचे तो वहां घना जंगल था, उन्होंने अपना भिक्षा पात्र राप्ति नदी और रोहिणी नदी के संगम पर रखा और वह साधन में लीन हो गए. इसी बीच खिचड़ी का पर्व आया और एक तपस्वी को साधन करते देख लोगों ने उनके पात्र में भिक्षा डालनी शुरू कर दी, लगातार भिक्षा डालने के बाद भी यह पात्र जब नहीं भरा तो लोग इसे तपस्वी का चमत्कार मानने लगे, जिसके बाद से हर साल खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई. 


तब से लेकर आज तक इस मंदिर हर साल खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई है. नेपाल और बिहार से भी लोग यहां खिचड़ी चढ़ाने के लिए आते हैं. वहीं कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने के बाद यहां खिचड़ी चढ़ाते हैं. 


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