लखनऊ, एबीपी गंगा। सियासत में जो पलटी न मारे वो नेता ही क्या। मौका पड़ने पर अपने हिसाब से सियासी दलों की नीति और विचारधारा में बदलाव आम बात है। अब यूपी में सपा और बसपा के गठबंधन को ही देख लीजिए, कभी एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाने वाले दोनों दल आज साथ हैं और पुरानी सियासी रंजिश को भुला चुके हैं। गठबंधन का मकसद अपनी सियासी जमीन को बचाना हो या फिर सत्ता में भागीदारी, लेकिन इसे जनता से जरूर जोड़ा जा रहा है और वोटरों को यह बताने का मौका कोई भी पार्टी नहीं छोड़ रही है कि गठबंधन तो आप के लिए ही है। आखिर राजनीति है तो अवसरों का ही खेल।


और सपा-बसपा ने कर ली दोस्ती


2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा का गठबंधन तो हो गया है, लेकिन ऐसा बहुत कुछ है इस दोस्ती में जिसकी गांठ खोलना आसान नहीं है। वो 90 के दशक का शुरुआती दौर था, उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण चरम पर था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कल्याण सिंह की सरकार नहीं बची और भाजपा को सत्ता से दूर करने के लिए सपा-बसपा ने गठबंधन किया।


मुलायम सिंह ने बनाई सरकार


1993 में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए। इसमें सपा को 110 सीटें और बसपा को 67 सीटें मिलीं। चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। मुलायम सिंह यादव ने इसके बाद बसपा और अन्य कुछ दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई, हालांकि बसपा सरकार में शामिल नहीं हुई थी। बसपा ने सपा को बाहर से समर्थन दिया था।


सियासी खेल में पड़ गई खलल


सपा-बसपा की दोस्ती नहीं चली और नतीजा यह हुआ कि गठबंधन टूट गया। कहा तो यह भी जाता है कि मुलायम सिंह को इस बात की भनक पहले ही लग गई थी बसपा सरकार से समर्थन वापस लेने का मन बना चुकी है। इसका नतीजा जो हुआ उसे हम गेस्टहाउस कांड के नाम से जानते हैं।



2 जून, 1995- अहम के ये तारीख


बसपा का यह वो दौर था जब इसकी कमान कांशीराम के हाथ में हुआ करती थी। उन्हीं के कहने पर मायावती ने विधायकों की एक बैठक बुलाई। लखनऊ के मीरा रोड स्थित गेस्ट हाउस में मायावती विधायकों के साथ बैठक कर रहीं थीं। मुलायम सिंह को बैठक के बारे में पता चला जिसके बाद सपा के कई कार्यकर्ताओं और विधायकों ने गेस्टहाउस पर हमला बोल दिया। सपा कार्यकर्ताओं ने बसपा के नेताओं के साथ मारपीट शुरू कर दी।


मायावती ने खुद को कमरे में किया बंद


हंगामे के बीच मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। कुछ देर में भीड़ मायावती के कमरे तक पहुंच गई और दरवाजा तोड़ने की कोशिश करने लगी। कहा तो यहां तक जाता है कि सपा कार्यकर्ताओं ने मायावती के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया और बदसलूकी भी की। बवाल बढ़ता देख पुलिस के आलाधिकारी मौके पर पहुंचे और मायावती की जान बच गई। कहा जाता है कि भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मायावती को बचाने में बड़ी भूमिका निभाई थी, हालांकि कुछ साल बाद ब्रह्मदत्त की हत्या हो जाती है।


गिर गई मुलायम की सरकार


इस पूरे कांड के बाद बसपा ने सपा से समर्थन वापस लेने का एलान किया और मुलायम सरकार बर्खास्त हो गई। इसके बाद भाजपा ने मायावती को समर्थन देने का एलान किया और गेस्टहाउस कांड यानी 2 जून 1995 के अगले दिन भाजपा के समर्थन से मायावती ने उत्तर प्रदेश के सीएम पद की शपथ ली।



हिट है बुआ-बबुआ की जोड़ी


सियासत का वो दौर बीत चुका है। 2019 में सपा की कमान अब मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव के हाथ में है। सियासी गिलियारों में बुआ-बबुआ (अखिलेश-मायावती) की जोड़ी फिलहाल हिट है। पिछले लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए और अपनी सियासी जड़ों को बचाए रखने के लिए गठबंधन ही आखिरी रास्ता था जिसपर दोनों पार्टियों ने कदम बढ़ा दिया है। दरअसल, अखिलेश और मायावती दोनों ने साथ आने के संकेत काफी पहले ही दे दिए ते। गोरखपुर, फूलपुर व कैराना में हुए उपचुनाव में भाजपा को हार मिली थी, जिसके बाद से यूपी में सियासी समीकरण बदलने लगे थे।


भाजपा के लिए बड़ी है चुनौती


अब बसपा सुप्रीमो गेस्ट हाउस कांड को भूल चुकी हैं या नहीं ने तो वो ही बता सकती हैं, लेकिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मायावती ने यह जरूर कहा था कि उस वक्त अखिलेश राजनीति में नहीं आए थे। मायावती का यह बयान सपा-बसपा के बीच हुए गठबंधन की मजबूती को प्रदर्शित करता है जो भाजपा के लिए यूपी में बड़ी चुनौती साबित होने वाला है।