जानें- दुनिया में कहां होता है पांच नदियों का संगम, इस स्थान को क्यों कहते हैं महा तीर्थराज
यूपी के जालौन जिले में दुनिया का इकलौता स्थान है जहां पांच नदियों का संगम है. पचनद में यमुना, चम्बल, सिंध, पहुज, क्वांरी नदियां बहती हैं. पचनद को तो महा तीर्थराज के नाम से भी जाना जाता हैं.
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jalaun pachnad: जालौन और इटावा की सीमा पर पचनद प्रकृति का अनूठा उपहार है. तीन नदियों का संगम होने से प्रयाग तीर्थराज बन गया उसमें भी एक नदी अदृश्य है. पांच नदियों का संगम तो दुनिया में कहीं नहीं है. इसलिए पचनद को तो महा तीर्थराज के नाम से जाना जाता हैं.
पांच नदियों का संगम है
वैसे तो भारत को ऋषि मुनियों का देश कहा जाता हैं. ऐसे ही एक ऋषि से जुड़ी कहानी पचनद के इतिहास का बखान करती हैं. ये दुनिया का इकलौता स्थान है जहां पांच नदियों का संगम है. पचनद में यमुना, चम्बल, सिंध, पहुज, क्वांरी नदियां बहती हैं. यहां के एक तपस्वी ऋषि की कहानी कुछ ऐसी थी कि खुद तुलसीदास गोस्वामी को उनकी ख्याति के चलते ऋषि की अग्नि परीक्षा लेनी पड़ी थी. मान्यता है कि जब तुलसीदास को प्यास लगी तो उन्होंने किसी को पानी पिलाने के लिए आवाज दी. ऋषि मुचकुंद ने अपने कमंडल से पानी छोड़ा जो कभी नहीं खत्म हुआ और फिर तुलसीदास जी को उनके इस प्रताप को स्वीकार करना पड़ा.
मौजूद हैं प्रमाण
पचनद के तट पर जालौन जिले की सीमा में बाबा साहब का मन्दिर है तो नदियों के उस पार इटावा जिले में कालेश्वर की गढिया है. बाबा साहब यानि मुचकुंद महाराज गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे और इतने सिद्ध सन्त थे कि स्वयं तुलसीदास भी उनसे मिलने पहुंचे थे. इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि वर्तमान में जगम्मनपुर के राज परिवार में तुलसीदास की खड़ाऊं, माला और शंख सुरक्षित हैं जो वे मुचकुंद महाराज के पास छोड़ गए थे. मुचकुंद महाराज की गाथा ऐसी मानी जाती है कि वो इतने सिद्ध संत थे कि खुद तुलसीदास को नतमस्तक होना पड़ा था.
अचंभित करने वाले हैं कुछ तथ्य
मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे भी तथ्य हैं जो अचंभित करने वाले हैं. यहां पर अपनी तपस्या में लीन रहे मुचकुंद महाराज तपस्या के दौरान एक गुफा में विलीन हो गए थे और उनका शरीर आज तक किसी को नहीं मिला. फिलहाल, मंदिर परिसर में आज भी उनके पैरों की पूजा की जाती है. लेकिन, वहां पर रहने वाले आसपास के ग्रामीणों का कहना है कि महाराज कभी-कभी दर्शन देते हैं. वहीं, मंदिर के 40 से 50 किलोमीटर के क्षेत्र में कभी ओलावृष्टि नहीं होती है.
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