लखनऊ. कभी प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ मुखर रहने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अब इसी के समर्थन में नजर आने लगे हैं. इसे अखिलेश की मजबूरी कहे या फिर दलित वोट को साधने की नीति. सपा को अब प्रमोशन में आरक्षण पर अपनै स्टैंड बदलना पड़ रहा है. यही वजह है कि उन्होंने सपा की सरकार बनने पर प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था लागू करने के साथ ही रिवर्ट किए गए दलित व पिछड़े वर्ग के कर्मियों के दोबारा प्रमोशन देने का एलान किया है.


दरअसल, आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अवधेश वर्मा के नेतृत्व में प्रतिनिधियों नेअखिलेश यादव से मुलाकात की थी. मुलाकात में उन्होंने प्रमोशन  में आरक्षण बिल को संसद में पास कराने व पिछड़े वर्गों को भी पदोन्नति में आरक्षण देने की व्यवस्था लागू कराने में मदद करने की मांग की थी. अवधेश ने बताया कि करीब एक घंटे तक इस मुद्दे पर चर्चा के बाद सपा अध्यक्ष ने स्वीकार किया कि उनकी सरकार में कुछ गलतियां हो गई हैं.


बता दें कि मायावती सरकार ने राज्य में प्रमोशन में आरक्षण लागू किया था. हालांकि, उत्तर प्रदेश में सत्ता में अखिलेश यादव के आने के बाद करीब 2 लाख दलित कार्मिकों को रिवर्ट किया गया था, जिन्हें मायावती ने प्रमोशन दिया था. अखिलेश सरकार ने आधिकारिक आदेश के जरिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मियों के लिए पदोन्नति को समाप्त कर दिया था, जिसका जमकर विरोध हुआ था. इस मामले को कोर्ट ने संज्ञान लिया था.


क्या है अखिलेश की मजबूरी?
प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर यू टर्न लेना अखिलेश यादव की मजबूरी माना जा रहा है. दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में अखिलेश को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा है. चाचा शिवपाल यादव के सपा छोड़ने और नया दल बनाने के बाद उनकी पार्टी और कमजोर पड़ चुकी है. यही वजह है कि दलितों को साधने के लिए अखिलेश अब प्रमोशन में आरक्षण की वकालत कर रहे हैं. इसके अलावा ऐसा कहा जा रहा है कि दलितों का मायावती की पार्टी बसपा से मोहभंग हो रहा है. ऐसे में अखिलेश इस मुद्दे के जरिए दलित वोट पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.


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