आखिर, किस वजह से स्मृति ईरानी के विश्वासपात्र बन गए थे बरौलिया के पूर्व प्रधान सुरेंद्र सिंह
अमेठी के बरौलिया गांव के पूर्व प्रधान सुरेंद्र सिंह निवर्तमान सांसद व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के बेहद करीब थी। उन्हीं की मेहनत का नतीजा था कि 2014 में उन्हें बरौलिया गांव से सर्वाधिक वोट हासिल हुए थे।
अमेठी, एबीपी गंगा। सुरेंद्र सिंह की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी मदद से ही स्मृति ईरानी ये बोल सकीं कि 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता....'। उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट....जिस बेल्ट में बीजेपी आम चुनाव के दौरान सबसे बुरे हाल में रही, उस अमेठी में अगर कमल खिल सका...तो उसमें बहुत बड़ा श्रेय सुरेंद्र सिंह को भी जाता है। अमेठी सीट के अस्तित्व में आने बाद से अबतक 17 लोकसभा चुनाव (2019 को मिलाकर) और दो उपचुनाव हो चुके हैं। जिसमें 16 बार यहां कांग्रेस ने परचम लहराया है, जबकि केवल दो बार (स्मृति ईरानी की जीत को मिलाकर) बीजेपी कमल खिला सकी है। 2019 की बीजेपी की इस जीत में सुरेंद्र सिंह का बहुत योगदान रहा था।
2014 में स्मृति ईरानी को बरौलिया गांव से मिले थे सर्वाधिक वोट
बात अगर, 2014 के आम चुनाव की करें, तो बीजेपी नेता स्मृति ईरानी पहली बार अमेठी की चुनावी रणभूमि में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मुकाबले उतरीं थी। उस वक्त वो ये चुनाव जीत तो न सकीं थी, लेकिन बरौलिया गांव में उन्हें सर्वाधिक वोट हासिल हुए थे। बरौलिया गांव से मिले इन रिकॉर्ड वोटों ने सुरेंद्र सिंह को स्मृति ईरानी के करीब लाकर खड़ा कर दिया।
ऐसे बढ़ा सुरेंद्र सिंह का कद
2014 के चुनाव में हार के बाद भी स्मृति ईरानी ने अमेठी से अपना रिश्ता जोड़े रखा। जब बरौलिया में आग लगी, तो सुरेंद्र सिंह की पहल से स्मृति ईरानी गांववालों की मदद करने पहुंचीं। पिछला आम चुनाव हारने के बाद भी क्षेत्र में उनकी सक्रियता बनी रही और दूसरी ओर पूर्व प्रधान भी बीजेपी के लिए वहां जमीन तैयार करते रहे। सुरेंद्र की मेहनत और बरौलियां गांव से मिले रिकॉर्ड वोटों ने स्मृति ईरानी की नजरों में उनका कद बढ़ा दिया और इस तरह से उनकी भरोसेमंद व करीबियों में से एक हो गए।
इस वजह से पर्रिकर से बरौलिया को लिया था गोद
स्मृति ईरानी की जिद ही थी, जिस कारण यूपी से राज्यसभा सांसद बने दिवंगत मनोहर पर्रिकर ने बरौलियां गांव को प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया। इसके साथ ही पिछले पांच वर्षों में इस गांव में 16 करोड़ से अधिक की लागत से विकास कार्य भी करवाए गए हैं।
- सुरेंद्र सिंह 2005 में पहली बार बरौलिया के ग्राम प्रधान निर्वाचित हुए।
- इससे पहले वो बीजेपी संगठन में जामो मंडल के अध्यक्ष थे।
- विधानसभा चुनाव 2017 के पहले तक सुरेंद्र बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष भी थे।
बरौलिया का प्रधान बनने के बाद उन्होंने न सिर्फ इस गांव का विकास किया बल्कि उन्होंने यहां की जनता से ऐसा रिश्ता जोड़ा कि उसके बाद हुए हर चुनाव में सुरेंद्र ने जिसे चाहा, वो गांव का प्रधान बना। यहां तक की गांव के वर्तमान प्रधान राम प्रकाश भी सुरेंद्र के करीबी लोगों में शामिल हैं।
इतना ही नहीं, चुनाव के दौरान स्मृति ईरानी ने उन्हें जिस क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी थी, वहां बीजेपी का वोट प्रतिशत बेहद कम था। इसके बावजूद अपनी मेहनत व रणनीति से सुरेंद्र ने पार्टी को वहां बढ़त दिलाई। स्मृति ईरानी की मेहनत और सुरेंद्र सिंह जैसे कार्यकर्ता की बदौलत ही 2019 में बीजेपी, कांग्रेस के गढ़ में न सिर्फ कमल खिला सकी बल्कि देश की सबसे बड़ी व पुरानी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी को भी हार का स्वाद चखाने में सक्षम रहीं।