नई दिल्ली, एबीपी गंगा। पूरा देश आज आजादी के जश्न में डूबा हुआ है। आज ही के दिन साल 1947 को अंग्रेजों की लंबी गुलामी के बाद भारत ने आजाद हवा में सांस ली और आजाद सुबह का सूरज देखा। स्वतंत्रता दिवस के साथ एक परंपरा भी जुड़ी है। दरअसल, हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री लाल किले से ही झंडा फहराते हैं। हर साल की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से झंडा फहराया और देश को संबोधित किया। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर झंडा फहराने की परंपरा उतनी ही पुरानी है जितनी पुरानी इस देश की आजादी। अक्सर चर्चा होती है कि आखिर क्यों देश के प्रधानमंत्री लाल किले से झंडा फहराते हैं। स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने के लिए लाल किले को ही क्यों चुना गया? इन सवालों की पीछे कई कारण हो सकते हैं।


नेहरू ने भी लाल किले पर फहराया था तिरंगा
आजाद भारत के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी लाल किले से तिरंग फहराया था। नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने भी इस परंपरा को जारी रखा और लाल किले से झंडा फहराया था।


आजादी के लिए संघर्ष का केंद्र रहा लाल किला
दरअसल, लाल किला परिसर का निर्माण भारत के पांचवे मुगल बादशाह शाहजहां की नई राजधानी-शाहजहांबाद के महल किले के रूप में की गयी थी। लाल बलुआ पत्थर की इसकी विशाल घेराबंदी दीवार के कारण इसका नाम लाल किला रखा गया था। लाल किला को मुगल सृजनात्मकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है जिसे शाहजहां के अधीन परिमार्जन के एक नए स्तर तक स्थापित किया गया था।


लाल किले की इमारत योजना और रूपरेखा पहले मुगल बादशाह द्वारा वर्ष 1526 में शुरू की गई थी। लाल किले में विकसित इमारत घटकों और उद्यान रूपरेखा संबंधी नवीन इमारत योजना व्यवस्था और स्‍थापत्‍य शैली ने राजस्थान, दिल्ली, आगरा और आगे दूर तक पश्चातवर्ती इमारतों और उद्यानों को काफी प्रभावित किया। लाल किला उन घटनाक्रमों का स्थल रहा है जिसने अपनी भू-सांस्कृतिक क्षेत्र पर महत्वपूर्ण रूप से प्रभाव डाला है। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र भी लाल किला ही था। उस वक्त क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर म्यांमार भेज दिया था।


सुभाष चंद्र बोस ने किया था कब्जे का आह्वान
स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने रंगून में आजाद हिन्द फौज का गठन किया तो उन्होंने 'दिल्ली चलो' का नारा दिया था और लाल किले पर दोबारा कब्जा हासिल करने का आह्वान किया। 200 सालों की लंबी गुलामी के बाद देश जब आजाद हुआ तो उसका जश्न भी लाल किले पर ही मनाया गया।