नई दिल्ली, एबीपी गंगा। राम जेठमलानी देश के वो वरिष्ठ वकील थे, जिनका नाम लगभग हर बड़े केस से जुड़ा रहा। 60 के दशक में तो उन्हें स्मगलरों का वकील कहा जाने लगा था, जिसकी वजह थी कि उन दिनों उन्होंने कई स्मगलरों के केस लड़े थे। वो अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते थे। राम जेठमलानी ऐसे थे, कि बीजेपी में रहते हुए भी वो पार्टी के कामकाज और पार्टी के शीर्ष नेताओं का खुलकर विरोध किया करते थे।


1959 में लड़ा पहला केस और कुछ यूं छा गए जेठमलानी


जेठमलानी के पहले केस की बात करें तो उनसे भी खूब सुर्खियों बटोरी थीं। 1959 में उनका पहला केस के.एम. नानावती बनाम महाराष्ट्र सरकार का था। ये केस उन्होंने यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के साथ लड़ा था। बाद में चंद्रचूड़ भारत के चीफ जस्टिस भी बने। इस केस के बाद जेठमलानी सुर्खियों में आ गए और इसके साथ ही कानूनी गलियारों में उनका नाम के चर्चे होने लगे। बता दें कि अभिनेता अक्षय कुमार स्टारर फिल्म 'रूस्तम' नानावती केस पर ही बनी थी।



1999 में वाजपेयी सरकार में बनें कानून मंत्री


जेठमलानी के राजनीतिक करियर की बात करें तो मुखर, बेबाक जेठमलानी 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जेठमलानी को अपनी सरकार में कानून मंत्री की जिम्मेदारी दी, लेकिन तत्कालीन चीफ जस्टिस आदर्श सेन आनंद और अटॉर्नी जनसल सोली सोराबजी से मतभेद के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया था। साल 2010 में बीजेपी ने राजस्थान से उन्हें राज्यसभा भेजा। इसके बाद 2013 में पार्टी के खिलाफ मुखर होने के कारण उन्हें 6 साल के लिए बीजेपी से निष्कासित कर दिया गया था।



2004 में अटल के खिलाफ चुनाव लड़े और हारे 


साल 2004 लोकसभा चुनाव के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था और उनके खिलाफ मैदान में सामने राम जेठमलानी थे। जबकि कांग्रेस ने अपना कोई प्रत्याशी मैदान में उतारा नहीं था। जेठमलानी चर्चित चेहरा होने के बावजूद वाजपेयी के कद के आगे उनका जादू फीका रहा और वो ये चुनाव हार गए।


अटलजी के निजी सचिव और दोस्त शिवकुमार बताते हैं कि उस दौरान जब हमने लखनऊ के मुस्लिम धर्मगुरुओं से बात की, तो उन्होंने अटल जी को समर्थन देने का पूरा भरोसा जताया। उस दौर में लखनऊ में अल्पसंख्यक समुदाय अटल जी के नाम पर वोट देते थे। यही वजह थी कि साल 2004 का चुनाव जेठमलानी 2.7 लाख वोटों से हार गए।



1984 में चुनावी मैदान में सुनीत दत्त से मिली हार 


साल 1984 में राम जेठमलानी का चुनावी मैदान में अभिनेता से नेता बने सुनील दत्त से भी हुआ था। 1984 में कांग्रेस ने मुंबई की उत्तर-पश्चिम सीट से सुनील दत्त काे अपना उम्मीदवार बनाया था। इस सीट से जेठमलानी ने 1977 और 1980 का चुनाव जीता था। हालांकि, 1984 के चुनाव में सुनील दत्त के स्टारडम और इंदिरा गांधी की सहानुभूति की लहर का कांग्रेस को पूरा फायदा मिला और ये चुनाव सुनील दत्त जीत गए और जेठमलानी को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में सुनील दत्त को 60 फीसदी, जबकि जेठमलानी को 30 फीसदी वोट मिले थे। सुनील दत्त 1989, 1991 का चुनाव भी जीते थे।


तो फ्री में केस लड़ते थे जेठमलानी!


राजनीति में उतार-चढ़ाव वाला करियर होने के साथ ही, जेठमलानी की वकालत भी खूब सुर्खियों में रही। कई मौकों पर जेठमलानी ये दावा करते दिखे कि उनके 90 फीसदी केस 'प्रो बोनो' हैं, यानी की बिना पैसों के लड़े हैं, जबकि अपने पैसों वाले मुवक्किलों से वो मोटी रकम वसूलते हैं।



अरुण जेटली से इस वजह से थी नाराजगी


जेठमलानी और अरुण जेटली के बीच का मतभेद भी सुर्खियों में रहा। कई सालों पर जेठमलानी जेटली का विरोध करते रहे। कहते हैं कि वाजपेयी सरकार में जेठमलानी से कानून मंत्री का पद जेटली की वजह से ही छीन लिया गया था। डीडीसीए में अनियमितताओं के मामले से लेकर  यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान सीबीआई के निदेशक के तौर पर रंजीत सिन्हा को नियुक्ति को लेकर भी जेठमलानी ने अरुण जेटली की आलोचना की थी। साथ ही, सुषमा स्वराज पर भी सवाल उठाए थे। दरअसल, लोकसभा में नेता विपक्ष के तौर पर सुषमा स्वराज  और राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर अरुण जेटली सीबीआई निदेशक की नियुक्ति वाली समिति में शामिल थे। जेठमलानी ने अरुण जेटली को तो नाकामयब वित्त मंत्री तक कह डाला था।


यह भी पढ़ें:


नहीं रहे वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी, 95 साल की उम्र में निधन

वो 20 मुकदमे जिन्होंने जेठमलानी को बनाया वकील नंबर-1