Gandak River: उत्तर प्रदेश (UP) के कुशीनगर (Kushinagar) में बाढ़ की त्रासदी से जनता को बचाने के लिए किए जा रहे उपायों की कलई बड़ी गंडक नदी ने ही खोल दी है. कटान और नदी का वेग रोकने के लिए तकरीबन एक महीने पहले लगाए गए परक्यूपाईन बालू की भीत की तरह गिरते जा रहें हैं. परक्यूपाईन (आरसीसी के छोटे-छोटे खंबों से बनाई गई त्रिभुजाकार आकृति) की रत्ती भर परवाह नदी नहीं कर रही है. कटान करते-करते नदी महदेवा गांव के करीब पहुंच गई है.


महदेवा गांव और नदी के बीच में बस एक तीन मीटर की सड़क का फासला रह गया है. यही नहीं छितौनी बांध के ठोकर नंबर दो और तीन के बीच लगाए परक्यूपाईन भी नदी के पानी में डूब गए हैं. स्थिति यह है ग्रामीणों को बाढ़ खंड के अभियंताओं के किसी भी बात पर भरोसा नहीं रह गया है और एक-एक पाई जोड़कर बनाए गए अपने आशियाने को अपने ही हाथों से तोड़ने लगे हैं. यह हालत तब है जब बड़ी गंडक नदी का जलस्तर अभी सामान्य बना हुआ है. नदी में बाढ़ जैसी कोई हालात नहीं है.


ग्रामीणों क्या है कहना?


परक्यूपाईन के बीच में कुछ झाड़ियां डालकर बड़ी गंडक नदी के वेग को रोकने के लिए किए जा रहे प्रयोग के पक्ष में बाढ़ खंड कुशीनगर के अभियंता चाहे जो तर्क दें लेकिन ग्रामीणों से लेकर बांधों पर निर्माण करा रहे ठिकेदार के कर्मचारी तक परक्यूपाईन को केवल धन खपाने का महज जरिया मान रहें हैं. इनका साफ शब्दों में कहना है कि इससे न कटान रुकेगी न ही बाढ़ से लोगों बचाया जा सकता है.


नेपाल के शिवालिक पर्वत श्रृंखला से निकलने के बाद बड़ी गंडक कुछ ही किलोमीटर का सफर तय कर कुशीनगर की सीमा में प्रवेश कर जाती है. बाढ़ खंड के अभियंताओं के मुताबिक इसके चलते नदी की ढलान काफी तीखी है. छितौनी बांध से एपी बंधे तक नदी का स्लोप लगभग 26 मीटर है. इसका परिणाम है कि नदी की धारा में काफी तीव्रता रहती है. नतीजतन बड़ी गंडक नदी नीचे और बगल में दोनों ओर काटती है. इसको देखते हुए बाढ़ खंड पहले तार की जाली में पत्थर भर बांधों के किनारे डाला करता था. खाई खोदकर उसमें पत्थर भर दिया जाता था, जिससे कटान करना नदी के लिए आसान नहीं होता था.


कर्मचारी भी कह रहे कटान नहीं रुकने की बात


दूसरी तरफ कुछ सालों से कुशीनगर जिले का बाढ़ खंड पत्थर भरी जाली की जगह परक्यूपाईन और झाड़ियों के सहारे बड़ी गंडक के वेग को रोकने का एक प्रयोग शुरू कर दिया है. बता दें कि आरसीसी के तकरीबन डेढ़ से दो मीटर लंब तीन खंबों से एक त्रिभुजाकार आकृति तैयार की जाती है. इसी त्रिभुजाकार आकृति को बाढ़ खंड परक्यूपाईन का नाम दे रखा है. त्रिभुजाकार आकृति को बाढ़ खंड नदी के किनारे खड़ा करा देता है और इसमें कुछ झाड़ियां भर दी जाती हैं. बाढ़ खंड अभियंताओं का दावा है कि इससे नदी के सिल्ट जमा हो जाता है और कटान रूक जाती है.


ग्रामीण और नदी के किनारे परक्यूपाईन लगवा रहे ठेकेदार के कर्मचारी अभियंताओं की बातों से सहमत नहीं हैं. महदेवा गांव की सहोदरी और शुभावती सहित तमाम महिलाएं कहती हैं, "ई काम निम्मन नईखे होत, जबले बोल्डर और जाली नाही पड़ी तब तक एसे कटान नाही रूकी." ग्रामीणों का भी साफ शब्दों में कहना है कि परक्यूपाईन से कटान नहीं रुकेगा. छितौनी बांध के ठोकर नंबर 2 और 3 के बीच में परक्यूपाईन लगवा रहे ठेकेदार के कर्मचारी भी मान रहे हैं कि इससे कटान नहीं रुकेगा.


बिना बाढ़ आए ही नदी के पानी में डूबे परक्यूपाईन


मौके की स्थिति भी चीख-चीखकर ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों की बातों की गवाही दे रही हैं. खड्डा तहसील के महदेवा गांव को बचाने के तकरीबन 1.99 करोड़ रुपये की परियोजना मौजूदा समय में चल रही है. इस परियोजना के तहत लगभग एक महीने पहले लगाई गई परक्यूपाईन बगैर बाढ़ आए नदी में गिरती जा रही है, जो परक्यूपाईन खुद खड़ा नहीं रह सकती, वह नदी के बेग को कितना रोकेगी. इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.


महदेवा गांव को बचाने के लिए बीते साल करीब 2.17 करोड़ रुपये की परियोजना बाढ़ खंड कुशीनगर की ओर से संचालित की गई. नदी को रोकने के लिए लगाई गई परक्यूपाईन बकवास साबित हुई और करीब 500 मीटर की दूर स्थित नदी जमीन को काट कर गांव तक पहुंच गई. तकरीबन 5 सालों से बाढ़ खंड कुशीनगर महदेवा गांव को बचाने की कवायद कर रहा है. हर साल सरकारी धन बहाया जाता रहा है और 4 किलोमीटर दूर नदी गांव तक पहुंच गई है. इसी तरह छितौनी बांध के ठोकर नंबर 2 और 3 के बीच लगायी गई परक्यूपाईन बगैर बाढ़ आए ही नदी के पानी में डूब गई है.


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