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अयोध्या-फैजाबाद में इन पांच वजहों से हार गए लल्लू सिंह, इसलिए भी काम नहीं आए राम!

Ayodhya Lok Sabha News: अयोध्या में तीन दशक से चुनाव लड़ रही पार्टियों में यहां सपा, बसपा, कांग्रेस भी जीती है. जिसका साफ मतलब है कि ये परंपरागत सीट नहीं है.

Faizabad Lok Sabha Seat: देश की 543 लोकसभा सीटों में कई हॉट सीट थी, पर फैजाबाद लोकसभा सीट एक ऐसी सीट थी जिसपर देश से लेकर विदेश तक की निगाहें थी. भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद 90 के दशक से शुरू हुआ राम मंदिर निर्माण का मुद्दा इस बार पूरा हुआ था और अयोध्या में भव्य और दिव्य राम मंदिर बन चुका था. उसके बाद यह पहली लोकसभा का चुनाव था पर इस लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से अपने सिटिंग सांसद लल्लू सिंह को एक बार फिर से प्रत्याशी बनाया था तो वहीं समाजवादी पार्टी ने अपने विधायक अवधेश प्रसाद को प्रत्याशी बनाया था. इस चुनाव में अवधेश प्रसाद ने लल्लू सिंह को 54567 वोटो से हरा दिया है. 

कब कब कौन सी पार्टी जीती है अयोध्या में.
अयोध्या सीट पर पहली बार 1957 में चुनाव हुआ था. तब से लेकर अब तक यहां पांच बार कांग्रेस पार्टी का प्रत्याशी जीता है, एक बार कांग्रेस (आई) का प्रत्याशी जीता है , एक बार जनता पार्टी यहां से जीती है , एक बार कम्युनिस्ट पार्टी यहां से जीती है, 5 बार भारतीय जनता पार्टी यहां से जीती है , एक बार बहुजन समाज पार्टी यहां से जीती है, और इस बार दूसरी बार समाजवादी पार्टी ने यहां से जीत दर्ज की है.

क्या है अयोध्या का जातीय समीकरण
उत्तर प्रदेश में चुनावों में आम तौर पर मुद्दे के अलावा जातिगत समीकरण का भी असर रहता है. आइए आपको बताते हैं क्या है अयोध्या का जातीय समीकरण- अयोध्या में 21% , दलित 19%, मुस्लिम 22%, ओबीसी 6%, ठाकुर 18 %, ब्राह्मण 18% और 10% के करीब वैश्य है.

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वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेद्र शुक्ला इस हार पर कहते हैं कि अयोध्या ने कई बार चौंकाया है. यहां से कम्युनिस्ट पार्टी तक चुनाव जीत चुकी है. उन्होंने कहा कि वहां के लोगों के लिए राम मंदिर आस्था का मुद्दा है , पर इस चुनाव में "आस्था और भावना" एक तरफ रखी लोगों ने और "समीकरण व सरोकार" एक तरफ रहा. आस्था उनकी राम में है और राम के प्रति विश्वास है पर जब अपने सरोकारों की बात आएगी तो लोगों की अपनी ज़रूरतें हैं और उन जरूरतो को पूरा करने में अगर व्यवधान आता है तो इस तरीके के नतीजे दिखते हैं, इसके साथ ही वहां के समीकरण भी उलटफेर रहे और समीकरणों के अनुसार भी भाजपा को नुकसान हुआ है. 

वरिष्ठ पत्रकार विनय राय कहते हैं कि अयोध्या कभी भी जातिगत समीकरण और परंपरागत सीट नहीं थी. अयोध्या में सपा भी जीती है, बसपा भी जीती है और कांग्रेस भी जीती है जिसका साफ मतलब है कि ये परंपरागत सीट नहीं है. उन्होंने कहा की यहां मुस्लिम - यादव और दलित के कॉम्बिनेशन और कांग्रेस का वोट ट्रांसफर होने के कारण सपा को यहां जीत मिली. उन्होंने कहा कि राम तो सबके हैं , और यह बात विपक्ष बताने में कामयाब रहा. वहीं विनय कटियार जैसे पुराने लोगों की वहां अनदेखी भी एक बड़ा कारण है इस हार की.

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इस मामले पर हनुमान गढ़ी के महंत राजू दास कहते हैं कि इस हार का सबसे बड़ा कारण प्रत्याशी का विरोध , कार्यकर्ताओं से किसी तरीके का तालमेल प्रत्याशी नहीं बना पाए. संगठन पूरी तरीके से शांत हो गया यहां तक कि प्रत्याशी ने किसी से संवाद नहीं किया.इसके साथ ही संघ भी इस बार यहां निष्क्रिय रहा और किसी से कोई वार्ता नहीं रही, क्योंकि सब तरफ लोग प्रत्याशी को एक्सेप्ट नहीं कर पाए. उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं की अनदेखी काफी समय से हुई जिस कारण कार्यकर्ता बिलकुल शांत हो गया और नतीजे सबके सामने हैं. उन्होंने कहा कि जितना वोट मिल पाया वह लोगों की राम में आस्था के कारण मिल पाया. लोगों की राम में आस्था है, लोग राम को मानते हैं, राम मंदिर से लोग संतुष्ट हैं , इसलिए यह इतना अधिक वोट मिला है नहीं तो नतीजा और बुरे हो सकते थे.

ये हैं पांच बड़ी वजहें!
बाबरी विध्वंस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और राममंदिर आंदोलन से जुड़े संतोष दुबे कहते हैं कि उनके हारने के पांच कारण है.उन्होंने कहा कि पहला कारण तो ये कि सांसद ने कोई काम नहीं किया इस कारण लोगों का विरोध था. दूसरा कारण उनका जातिवादी होना था, वो जिस जाति से थे उसको सपोर्ट करते थे और पिछले दिनों कुछ ब्राह्मणों की हत्या हुई और कहा जाता है सांसद दूसरे पक्ष का साथ दिए ,इसके बड़ा विरोध रहा. तीसरा कारण यह था कि सांसद लोगों से मिलते नहीं थे, कोई किसी काम के लिए कहता था तो कहते थे कि आपने हमें नहीं बल्कि मोदी को वोट दिया है. चौथा कारण विकास के नाम पर आए पैसों से जनता के सरोकार के काम नहीं होते थे. पांचवा कारण राममंदिर निर्माण में अलग अलग मंदिरों को तोड़ा जाना, जिससे लोगों को नाराजगी रही.

तपस्वी छावनी के पीठाधीश्वर जगतगुरु परमहंस आचार्य कहते हैं कि अयोध्या में एक चक्रव्यूह रचा गया और लल्लू सिंह उसमे अभिमन्यु की तरह शहीद हो गए. इसमें विदेशी ताकतों का भी बड़ा हाथ कि एक तरफ जहां जो मोदी - योगी विश्व स्तर पर अयोध्या की छवि बनाना चाहते हैं उसमे अगर अयोध्या को हरा देंगे तो विश्व स्तर पर बदनामी होगी. उन्होंने कहा अयोध्या को हराने के लिए बड़े स्तर पर बाहरी ताकतों ने भी फंडिंग की है.

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