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प्रदेश से लेकर देश की राजनीति में खूब चमके गोरखपुर विश्वविद्यालय के सितारे, नाम नहीं जानना चाहेंगे आप

गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं राजनीति के मैदान भी खूब नाम कमाया है। एक वक्त तो ऐसा रहा जब प्रदेश की विधानसभा और विधान परिषद की कमान यहीं के छात्रों के हाथ में थी।

गोरखपुर, एबीपी गंगा। उत्तर प्रदेश के सियासी सफर पर बात करें तो गोरखपुर का नाम लिए बिना चर्चा पूरी होना असंभव है। गोरखपुर हमेशा से ही यूपी की राजनीति के केंद्र में रहा है। इसमें गोरखपुर विश्वविद्यालय का रोल भी अहम है। अपनी स्थापना के बाद से ही गोरखपुर विश्वविद्यालय सूबे के विस्तृत क्षेत्र के साथ-साथ नेपाल के युवाओं की पहली पसंद रहा है। आज का आरएमएल अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद, वीबीएस पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर तथा सिद्धार्थ विश्वविद्यालय इसी के गर्भ से निकले हैं।

माता प्रसाद पांडेय

शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं यहां के छात्रों ने राजनीति के मैदान भी खूब नाम कमाया है। एक वक्त तो ऐसा रहा जब प्रदेश की विधानसभा और विधान परिषद की कमान यहीं के छात्रों के हाथ में थी। सिद्धार्थनगर के माता प्रसाद पांडेय की गिनती सूबे की सियासत के बड़े सूरमाओं में होती है। समाजवादी विचारधारा के नेताओं की फेहरिस्त में शुमार माता प्रसाद ने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री, श्रम मंत्री व दो बार विधानसभा अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी निभाई है।

कल्पनाथ राय

पूर्वांचल में विकास पुरुष के नाम से पुकारे जाने वाले दिग्गज नेता कल्पनाथ राय आज भले ही दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनको लेकर लगाव आज भी लोगों के बीच दिखाई देता है। मऊ जिले के सेमरीजमालपुर गांव में जन्मे कल्पनाथ की शिक्षा-दीक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय में हुई थी। विश्वविद्यालय जीवन में ही उन्होंने छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन आरंभ किया और समाजवादी युवजन सभा के सदस्य रहे। इंदिरा गांधी और नरसिंह राव सरकारों में वह मंत्री भी रहे। घोसी लोकसभा से चार बार सांसद चुने गए कल्पनाथ तीन बार राज्यसभा सदस्य भी रहे।

राजनाथ सिंह

उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री, देश के कृषि मंत्री, सबसे बड़े राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष से होते हुए देश के गृहमंत्री पद को सुशोभित कर चुके राजनाथ सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं है। आज के दौर के देश के शीर्षस्थ राजनेताओं में शुमार राजनाथ ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में एमएससी की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने पीएचडी के लिए भी यहां पंजीयन कराया था, लेकिन राजनीतिक व्यस्तताओं ने शोध कार्य पूरा नहीं होने दिया।

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शिव प्रताप शुक्ल

वर्तमान में राज्यसभा सांसद और केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री के रूप में देश के नीति-नियंताओं में शामिल शिवप्रताप शुक्ल ने गोरखपुर विश्वविद्यालय के आंगन में ही सियासत का अक्षर ज्ञान पाया। 1978 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर तले विवि छात्रसंघ अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ चुके शिवप्रताप, छात्र आंदोलनों में हमेशा सक्रिय रहे। इन्होंने बीए और एलएलबी की पढ़ाई इसी परिसर से ही की। आज भी परिसर से उनका गहरा जुड़ाव बना हुआ है।

वीर बहादुर सिंह

1985 से 1988 तक मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश का नेतृत्व करने वाले वीर बहादुर सिंह, गोरखपुर विश्वविद्यालय की बगिया के ही फूल थे। 1967, 1969, 1974, 1980, 1985 में महराजगंज के पनियरा क्षेत्र से विधायक चुने गए वीर बहादुर सिंह ने राजनीति का ककहरा गोरखपुर विश्वविद्यालय के परिसर में ही पढ़ा। यहां से परास्नातक की उपाधि प्राप्त वीर बहादुर सिंह छात्र राजनीति में खासे सक्रिय रहे। उन्होंने केंद्रीय संचार मंत्री के पद पर भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन बखूबी किया। गोरखपुर के विकास को लेकर वीर बहादुर सिंह के खास प्रयासों को आज भी लोग याद करते हैं।

हरिशंकर तिवारी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में करीब तीन दशकों तक एक विशिष्ट पहचान के साथ मजबूती से जमे रहे हरिशंकर तिवारी के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय का परिसर, राजनीतिक जीवन की प्रयोगशाला सरीखा रहा। वह विश्वविद्यालय के पहले बैच के छात्र रहे हैं। युवाओं के बूते राजनीति करने के उनके प्रयोग का विश्वविद्यालय परिसर गवाह है। चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र का करीब 23 साल तक प्रतिनिधित्व करने वाले हरिशंकर तिवारी कई सरकारों में मंत्री रहे। हरिशंकर तिवारी लंबे समय तक सूबे की राजनीति का अहम चेहरा बने रहे। उनका उत्तराधिकार आज उनके दोनों बेटे संभाल रहे हैं।

गणेश शंकर पांडेय

चार बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे गणेश शंकर पांडेय ने भी गोरखपुर विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। विश्वविद्यालय की पढ़ाई के बाद उन्होंने अपने मामा हरिशंकर तिवारी की पाठशाला में राजनीति का आक्षर-ज्ञान पाया और फिर एक दिन ऐसा आया कि वह प्रदेश विधान परिषद के सभापति पद को सुशोभित कर रहे थे। आज के दौर में भी गणेश शंकर का नाम उन नेताओं में शुमार है, जिनके दामन पर कोई दाग नहीं लगा।

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