हाथरस दुष्कर्म मामले में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र, निष्पक्ष जांच की मांग, जनहित याचिका के तौर पर हो सकती है सुनवाई
हाथरस दुष्कर्म मामला अब कोर्ट तक पहुंचता दिखाई दे रहा है. इस सिलसिले में अब चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर निष्पक्ष जांच की मांग की गई है. फिलहाल ये मामला अब बड़ा होता जा रहा है.
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प्रयागराज. यूपी के हाथरस में गैंगरेप के बाद मौत के घाट उतारी गई दलित लड़की का रात के अँधेरे परिवार वालों की सहमति के बिना पुलिस द्वारा जबरन अंतिम संस्कार किये जाने का मामला अब हाईकोर्ट की दहलीज तक पहुंच गया है. पूरे मामले की न्यायिक जांच कराए जाने और हाथरस में पुलिस और प्रशासन के ज़िम्मेदार अफसरों को हटाए जाने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी भेजी गई है. यह लेटर पिटीशन हाईकोर्ट के वकील गौरव द्विवेदी ने चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर को भेजी है. इस लेटर पिटीशन पर हाईकोर्ट गुरुवार को सुनवाई कर सकता है. अर्जी में मामले को बेहद गंभीर व शर्मनाक बताते हुए इसे अर्जेन्ट बेसिस पर सुनने और कोई आदेश जारी किये जाने की गुहार लगाई गई है.
SIT से कराएं जांच
वकील गौरव द्विवेदी की अर्जी में कहा गया है कि हाथरस की बेटी के साथ पहले तो दरिंदों ने हैवानियत कर उसे मौत के घाट उतारा. इसके बाद हाथरस के सरकारी अमले ने अमानवीयता की सारी हदें पार करते हुए रात के अंधेरे में जबरन अंतिम संस्कार कर दिया. इसमें परिवार वालों को भी शामिल नहीं होने दिया गया. अर्जी में मुख्य रूप से चार मांगे की गईं हैं. एसआईटी की जगह पूरे मामले की न्यायिक जांच की मांग ख़ास तौर पर की गई है. इसके साथ ही हाईकोर्ट से इस मामले की मानीटरिंग किये जाने, पीड़ित परिवार को मुक़दमे का निपटारा होने तक सुरक्षा मुहैया कराए जाने और मामले से जुड़े सरकारी अफसरों को हटाए जाने व उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई किये जाने की भी मांग की गई है.
पीआईएल के तौर पर हो सकती है सुनवाई
इस लेटर पिटीशन को हाईकोर्ट सुनवाई के लिए मंज़ूर करता है या नहीं, यह चीफ जस्टिस को तय करना होगा. हालांकि कयास यह लगाए जा रहे हैं कि अर्जी को हाईकोर्ट पीआईएल यानी जनहित याचिका के तौर पर मंज़ूर करते हुए यूपी सरकार से जवाब तलब कर सकता है. पीड़िता के साथ हैवानियत और उसकी मौत का मामला पहले ही सुर्ख़ियों में था, लेकिन जबरन कराए गए अंतिम संस्कार से लोगों में सिस्टम के प्रति ज़बरदस्त नाराज़गी है. अर्जी दाखिल करने वाले वकील गौरव द्विवेदी के मुताबिक़ यह पूरी तरह से न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि कानूनी अधिकार के भी खिलाफ है.
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