Allahabad High Court on Live in Relationship: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिए एक फैसले में कहा कि ‘लिव इन रिलेशनशिप’ संबंध जीवन का हिस्सा बन गए हैं और इसे सामाजिक नैतिकता के दृष्टिकोण से कहीं अधिक निजी स्वायत्तता के नजरिए से देखे जाने की जरूरत है. न्यायमूर्ति प्रितिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने दो युगल जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं का निस्तारित करते हुए यह आदेश पारित किया. इन युगल जोड़ों का आरोप है कि लड़कियों के परिजन उनके दैनिक जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं.


पुलिस ने नहीं की मदद


एक याचिका कुशीनगर की शायरा खातून और उसके साथी द्वारा जबकि दूसरी याचिका मेरठ की जीनत परवीन और उसके साथी द्वारा दायर की गई थी. याचिका में उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि उन्होंने संबंधित पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने उनकी कोई मदद नहीं की. उनका दावा है कि उनकी जान और स्वतंत्रता को नजरअंदाज किया जा रहा है.


पुलिस इन अधिकारों की रक्षा करने के लिए बाध्य


अदालत ने कहा, “लिव इन रिलेशनशिप जीवन का हिस्सा बन गए हैं और इस पर उच्चतम न्यायालय ने मुहर लगाई है. ‘लिव इन’ संबंध को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने के अधिकार से मिली निजी स्वायत्ता के नजरिये से देखा जाना चाहिए ना कि सामाजिक नैतिकता के नजरिये से”. अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारी इन याचिकाकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने को बाध्य हैं. अदालत ने आदेश दिया कि ऐसी स्थिति में जब याचिकाकर्ता संबंधित पुलिस अधिकारियों से संपर्क कर अपनी जान और स्वतंत्रता को किसी तरह के खतरे की शिकायत करें तो पुलिस अधिकारी कानून के तहत अपेक्षित अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे.


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