शमशान में अस्थियां रखने को कम पड़ गयी जगह...लॉक डाउन ने रोका मुक्ति का आखिरी सफर
देश में लॉक डाउन के चलते आवाजाही बंद है और तमाम लोग फंसे हुये हैं जो अपने गंतव्य की ओर नहीं जा पा रहे हैं। उत्तराखंड के खटीमा में शमशान घाट पर स्थिति कुछ ऐसी ही बन पड़ी है।
उधमसिंह नगर, एबीपी गंगा। लॉक डाउन में दूसरे राज्यों और विदेशों में फंसे होने के कारण जहां लोग अपने परिवार से मिलने को तरस रहे हैं। वही अंतिम यात्रा पूरी कर चुके लोग ईश्वर से मिलने को तरस रहे हैं। हम बात कर रहे हैं लॉक डाउन के दौरान मरे लोगों की अस्थियों की जो श्मशान घाटों में रखी है और गंगा में प्रवाहित होने का इंतजार कर रही हैं। उधम सिंह नगर जनपद के खटीमा स्थित श्मशान घाट में रखी अस्थियां भी अपनी अंतिम यात्रा का इंतजार कर रही हैं।
प्रदेश में लॉक डाउन के कारण प्रदूषण नहीं फैलने की वजह से जहां गंगा सहित अन्य नदियां साफ व स्वच्छ हो गई हैं। वही इसका एक कारण गंगा व अन्य नदियों में अस्थियों को प्रवाहित ना करना भी है। उधम सिंह नगर जनपद के खटीमा स्थित श्मशान घाट में लॉक डाउन के दिनों में जलाए गए शवों की अस्थियां अभी भी श्मशान घाट में ही है। अस्थियों को रखने का लॉकर भर चुका है जिसकी वजह से अस्थियां अब खुले में रखी जा रही हैं। चूंकि लॉक डाउन की वजह से मृतकों के परिजन उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने के लिए हरिद्वार नहीं जा पा रहे हैं। क्योंकि सरकार द्वारा सिर्फ मेडिकल ग्राउंड पर ही पास दिए जाने का आदेश है।
खटीमा श्मशान घाट की प्रबंधन कमेटी का कहना है कि लॉक डाउन की वजह से श्मशान घाट में काफी अस्थियां इकट्ठी हो गई हैं। जिसकी वजह से अस्थियों को रखा जाने वाला लॉकर भर गया है और नई अस्थियों को खुले में रखना पड़ रहा है। वहीं प्रबंधक कमेटी का कहना है कि हमने अस्थियों के स्वामियों को सूचित कर दिया है कि वह अपनी अस्थियों श्मशान घाट से ले जाएं। लॉक डॉउन की वजह से लोग अपनी अस्थियां लेने नहीं आ रहे हैं। हम लॉक डाउन खत्म होने के बाद फिर से सभी को सूचित करेंगे और इस कार्य में जो भी मदद होगी की जाएगी।
गौरतलब है कि हिन्दू परम्पराओं के अनुसार मृत्यु के बाद मृतक की अस्थियों को गंगा या अन्य पवित्र नदियों में प्रवाहित किया जाता है। जिससे मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। लेकिन लॉक डॉउन में सार्वजनिक परिवहन के बंद होने व अन्य वजहों से खटीमा श्मशान में पड़ी कई अस्थियों को अपने भगीरथ का इंतजार है। जो उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर उन्हें मुक्ति दिला सके।