बाराबंकी: लॉकडाउन में फूलों का कारोबार चौपट, बैंक के कर्ज ने बढ़ाई किसानों की चिंता
लॉकडाउन में फूलों का कारोबार चौपट हो गया है. बैंक के कर्ज ने फूलों के किसानों की चिंता बढ़ा दी है. किसान अपने मवेशियों को फूलों की तैयार फसल खिलाने को मजबूर हो गए हैं. बाराबंकी के बिशुनपुर गांव में फूलों की खेती करने वाले किसान गया प्रसाद मौर्य ने अपना दर्द बयां किया है.
बाराबंकी, एबीपी गंगा: कोरोना संकट और लॉकडाउन ने फूलों का कारोबार चौपट कर दिया है. कोरोना महामारी को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन लागू है और लोग अपने घरों में कैद हैं. मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे सब बंद हैं. ऐसे में फूलों की खेती करने वाले किसानों पर भी आफत आन पड़ी है, क्योंकि लॉकडाउन में फूलों के न तो कोई खरीददार मिल रहे और न ही कहीं बेचने जा पा रहे हैं. ऐसे में किसान अपने फूलों को काटकर जानवरों को खिलाने के लिए मजबूर हैं.
हर महीने लाखों कमाते थे गया प्रसाद
राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी के बिशुनपुर गांव में रहने वाले प्रगतिशील किसान गया प्रसाद मौर्य लंबे समय से फूलों की पैदावार कर रहे हैं और हर महीने लाखों रुपये कमा लेते थे, लेकिन कोरोना की मार से हर महीने लाखों की कमाई करने वाले किसान खेतों में खड़ी फूलों की फसल को पशुओं को खिलाने के लिए मजबूर हो गए हैं.
प्रति एकड़ से ढाई से 3 लाख की होती थी आमदनी
कोरोना संकट के चलते शादी समारोह, मंदिरों व राजनीतिक मंचों की शोभा बढ़ाने वाले फूल खेतों में ही खड़े-खड़े सूख रहे हैं. किसान गया प्रसाद के खेतों के फूलों की सप्लाई लखनऊ मंडी में होती थी.
उनका कहना है कि प्रति एकड़ में 40 से 50 हजार लागत लगा कर ढाई से 3 लाख रुपये की आमदनी होती थी, लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते फूलों की फसल को काट-काटकर जानवरों को खिलाना पड़ रहा है. न तो कोई खरीददार है और न ही कोई पूछने वाला. खेतों में ही फूलों की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है. मई-जून में शादी की सहालक को देखते हुए बैंक से के.सी.सी लोन लेकर फूलों की बुआई की थी, लेकिन इस बार लागत के साथ मजदूरी, मेहनत सब चली गई.
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