गाजियाबाद: शहरों में संक्रमण की रफ्तार कम होने के बाद कोरोना महामारी अब गांवों को अपनी चपेट में ले रही है. गांव में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल क्या है, इसके लिये गाजियाबाद में एबीपी गंगा ने पड़ताल की. हालांकि, स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. उत्तर प्रदेश के गांव की तस्वीरें देखकर उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के शब्द पर जरूर गौर फरमाएंगे. हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था राम भरोसे हैं.


सरकार को मुंह चिढ़ा रहा है स्वास्थ्य केंद्र पर लगा ताला


हकीकत जानने के लिये, इस कड़ी में हमने गाजियाबाद के गांव में स्वास्थ्य सामुदायिक केंद्र का रियलिटी चेक किया और जो तस्वीरें सामने आई वह बेहद ही निराशाजनक थी. क्योंकि यह तस्वीरें उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के बयान से मेल नहीं खा रही थी. गाजियाबाद मुरादनगर ब्लॉक के अबूपूर में हालात सरकार को मुंह चिढ़ाने वाले हैं. यहां लगभग साढ़े आठ हजार की आबादी है, लेकिन उसके बावजूद भी यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर ताला लगा है. कोई भी डॉक्टर या फिर स्टाफ यहां मौजूद नहीं है. 


समय सुबह के 11:30 बजे हैं. यह हालात गांव में तब है, जब गांव में लगातार मौतें देखने को मिल रही हैं. हालांकि ग्राम प्रधान का कहना है कि गांव में कोरोना टेस्ट की सुविधा ना होने के कारण इन मौतों को कोराना से होने वाली मौतें नहीं कहा जा सकता है. लेकिन अभी भी गांव में लगभग 50 से 60 लोग ऐसे हैं जिनको कोरोना वायरस के लक्षण हैं. उनका घर में ही इलाज किया जा रहा है. अब जरा अंदाजा लगाइए कि, जब गांव में इस तरह के हालात लगातार सामने आ रहे हैं, दूसरी और उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि गांव में स्थिति नियंत्रण करने के लिए लगातार प्रयास जारी हैं. लेकिन प्रशासन की लापरवाही की तस्वीर सबके सामने है.


गांव सोंदा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का हाल बेहाल


इसके बाद हम मुरादनगर ब्लॉक के ही गांव सोंदा पहुंचे और वहां जाकर हम ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का जायजा लिया. यहां भी सिर्फ गांव का नाम बदला था, आबादी बदल गई थी, लेकिन हालात पहले गांव से भी बदतर. यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के गेट के सामने गंदगी का अंबार लगा है. इस गंदगी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर जो ताला लटका है वह कितने दिन का होगा. यहां के लोगों से हम ने जानने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि, जहां यह बहुत से दिनों से बंद पड़ा है. कोई भी डॉक्टर यहां नहीं आता है और अगर उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी होती है, तो उन्हें मुरादनगर मोदीनगर या फिर गाजियाबाद जाना पड़ता है.


यहां पर अगर किसी भी व्यक्ति को कोरोना के लक्षण हो जाते हैं. वह अपनी जांच और इलाज तक नहीं करवा सकता है. जबकि गांव और देहात में कहा गया है कि, गांव में ही सभी तरह की व्यवस्था की जा रही है. लेकिन यह दावे भला किस काम के जब आम इंसान को इनका फायदा ना मिल सके. यह हालात गाजियाबाद में तब है, जब खुद गाजियाबाद के ही रहने वाले अतुल गर्ग उत्तर प्रदेश राज्य सरकार से स्वास्थ्य मंत्री हैं. उसके बावजूद अगर ऐसे हालात जिला गाजियाबाद के देहाती इलाकों के हैं, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बाकी गांव के हालात कितने बदतर हो सकते हैं.


स्वास्थ्य केंद्र और कूड़ के ढेर


इसके बाद हम मुरादनगर नहर पर स्थित पैंगा गांव में पहुंचे. गांव की गलियां मानो ऐसे सन्नाटे को चीर रही थी कि वर्षों से यहां कोई रहा ही ना हो. यहां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जब हमने तस्वीरें देखी तो देखते रह गए. स्वास्थ्य केंद्र की हालत दयनीय थी. गेट पर ताला लगा हुआ था. 


यह तो सिर्फ गाजियाबाद के तीन गांव की तस्वीर हमने दिखाई. इसके अलावा जिला गाजियाबाद में 161 गांव हैं. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 161 गांव की तस्वीरें कितनी भयंकर होगी, जबकि देहाती इलाकों में लगातार मौतें हो रही हैं. बस इन मरने वाले लोगों का कसूर इतना है, कि उन्होंने अपना कोविड टेस्ट नहीं कराया. जिसके चलते इनकी मौतें सरकारी आंकड़ों में नहीं गिनी जा रही हैं. लेकिन इन सभी लोगों में कोरोना के लक्षण के बाद घर पर इलाज करने पर इनकी मौतें हुई हैं. ऐसा गांव के लोगों का कहना है लेकिन गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था राम भरोसे है. 


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