UP Politics: अमेठी का 47 साल पुराना चुनावी इतिहास, गांधी-नेहरू परिवार का गढ़, संजय और मेनका की हार का गवाह
UP Politics: अमेठी लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी लेकिन इस सीट पर 1977 से लेकर 2019 तक कई रोचक किस्से जुड़े हुए हैं. हम हर चुनाव के बारे में आपको बता रहे हैं.
Lok Sabha Election 2024: देश में अगले महीने लोकसभा चुनाव का एलान होने वाला है. लेकिन इस चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का गढ़ रही अमेठी और रायबरेली सीट की काफी चर्चा है. खास तौर पर अमेठी सीट जहां पिछली बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने गढ़ में चुनाव हार गए थे. इस बार अमेठी में राहुल गांधी की दावेदारी को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. लेकिन हम इस सीट के 57 पुराने इतिहास पर एक नजर डालें तो ये सीट गांधी-नेहरु परिवार के लिए खास रही है.
दरअसल, अमेठी लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई और तभी इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. पहली बार इस सीट से गांधी-नेहरू परिवार से 1977 के लोकसभा चुनाव में सजंय गांधी ने चुनाव लड़ा था. हालांकि उन्हें इस चुनाव में रविंद्र प्रताप सिंह ने 75,844 वोट के अंतर से चुनाव हराया था. तब रविंद्र प्रताप सिंह कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी के संयुक्त उम्मीदवार थे. लेकिन जब 1980 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार गिरी तो फिर से लोकसभा चुनाव हुआ.
पहली बार 1980 में जीता गांधी परिवार
इस चुनाव में फिर अमेठी से संजय गांधी ही कांग्रेस के उम्मीदवार बने. इस बार उन्होंने अपनी पिछली हार का बदला लिया और रविंद्र प्रताप सिंह को 1,28,545 वोटों के अंतर से चुनाव हरा दिया. लेकिन संजय गांधी के निधन के बाद इस सीट पर 1984 में चुनाव हुआ और अब उनके भाई राजीव गांधी अमेठी से ही चुनावी मैदान में थे. हालांकि तब मेनका गांधी परिवार से अलग होकर चुनाव लड़ रही थीं. उन्हें इसी सीट पर हार का सामना करना पड़ा और अपने पति की राजनीतिक विरासत को आगे नहीं बढ़ा पाईं.
तब मेनका गांधी को उनके देवर राजीव गांधी ने 3,14,878 वोट के अंतर से हराया था और अब ये सीट गांधी परिवार का गढ़ बन चुकी थी. इसके बाद संजय गांधी ने 1989 का चुनाव इसी सीट से करीब दो लाख के अंतर से जीता था. उन्होंने 1991 का लोकसभा चुनाव भी इस सीट से लड़ा और 1,12,085 वोट के अंतर से जीत दर्ज की. लेकिन जब 1991 में संजय गांधी की हत्या हो गई तो कांग्रेस ने उनके ही करीबी सतीश शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया.
संजय गांधी के करीब ने बचाई लाज
सतीश शर्मा पूरी तरह से कांग्रेस की उम्मीदों पर खरे उतरे और उन्होंने 1996 का चुनाव करीब 40 हजार वोटों के अंतर से जीता था. हालांकि 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के संजय सिंह ने कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाई और संजय गांधी के करीबी सतीश शर्मा को करीब 23 हजार के अंतर से हारकर चुनाव में जीत दर्ज की. लेकिन अगले साल फिर देश में लोकसभा चुनाव हुए और इस बार कांग्रेस के ओर से सोनिया गांधी खुद पार्टी अध्यक्ष के तौर पर मैदान में थीं.
सोनिया गांधी ने इस सीट पर 1999 में फिर से परिवार के दबदबे को बनाए रखा और करीब 3 लाख वोटों के अंतर से चुनाव में जीत दर्ज की. राहुल गांधी के चुनावी सफर की शुरूआत इसी सीट से हुई और उन्होंने 2004 का लोकसभा चुनाव अमेठी से लड़ा था. उस चुनाव में राहुल गांधी ने 2,90,853 वोट के अंतर से जीत दर्ज की थी. उन्होंने 2009 में भी अमेठी से चुनाव लड़ा और 3,70,198 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की.
स्मृति ईरानी ने लिया हार का बदला
राहुल गांधी 2014 के मोदी लहर में भी इस सीट को बचाने में कामयाब हुए, हालांकि उनकी जीत का अंतर काफी कम हो गया. इस चुनाव में कांग्रेस नेता ने स्मृति ईरानी को 1,07,903 वोटों के अंतर से हराया था. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराकर अपनी हार का बदला पुरा कर लिया. इस चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने करीब 55 हजार वोट के अंतर से चुनाव जीता था.
ऐसे में देखा जाए तो एक ओर ये सीट गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ भी रही है. लेकिन इस सीट पर संजय गांधी और उनकी पत्नी मेनका गांधी को हार भी झेलनी पड़ी. अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को भी इस सीट पर हार झेलनी पड़ चुकी है. वर्तमान में वह केरल के वायनाड से सांसद हैं और इसी वजह से आगामी चुनाव को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. इसी वजह है कि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का यहां से चुनाव लड़ा फिर से लगभग तय है.