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Loksabha Election: मिशन 2024 के लिए बीजेपी ने तैयार किया फुल प्रूफ प्लान, सपा को लग सकता है जबरदस्त झटका!

Loksabha Election: 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने रणनीति में बदलाव किया है, एक तरफ उसकी नजर यादव वोटबैंक पर है तो वहीं दूसरी तरफ अखिलेश के गुलदस्ते से अलग हुए नेताओं को भी साथ लाना चाहती है.

Loksabha Election 2024 BJP Preparation: 2024 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) को लेकर बीजेपी (BJP) की रणनीति क्या रहने वाली है इसके संकेत मिलने लगे हैं. एक तरफ बीजेपी की तैयारी यादव वोट बैंक (Yadav Vote Bank) में सेंधमारी की है, तो दूसरी तरफ बीजेपी इस कोशिश में भी है कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के गुलदस्ते से जो फूल अलग हुए हैं उन्हें 2024 से पहले अपने बुके में संजो लिया जाए. उत्तर प्रदेश में यादव वोटबैंक तकरीबन 7-8 फीसदी है. 2022 में तमाम कोशिशों के बाद भी बीजेपी इसमें सेंध नहीं लगा पाई थी. 
 
2024 के लिए बीजेपी की रणनीति
सोमवार को पीएम मोदी ने कानपुर में जब चौधरी हरमोहन सिंह यादव की पुण्यतिथि कार्यक्रम को वर्चुअल तरीके से संबोधित किया तो इसके जरिए एक बड़ा संदेश प्रदेश की सभी 80 सीटों पर भी गया है. संदेश यह है कि बीजेपी ने 2024 से पहले यादव समाज को भी अपने साथ लाने की तैयारी पूरी कर ली है. ये बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है. यूपी में ओबीसी वोट बैंक की अगर बात करें तो यादव वोट बैंक 7-8 फीसद के साथ अच्छी खासी संख्या में है. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी 2022 के चुनाव में वो सपा के साथ ही रहा. लोकसभा चुनाव में यादवों को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी अभी से जुट गई है. चौधरी हरमोहन सिंह की पुण्यतिथि में पीएम मोदी का संबोधन इसी रणनीति का हिस्सा है. 
 
यादव वोट बैंक पर पार्टी की नजर
एक तरफ तो बीजेपी की नजर ओबीसी में यादव वोट बैंक पर है तो वहीं दूसरी तरफ ओबीसी में नॉन यादव वोट बैंक को भी बीजेपी सहेजने में जुटी हुई है और अब तो इस रणनीति के तहत सपा गठबंधन मे रहे तमाम दलों को अपने साथ लाने की कवायद भी शुरू हो गई है. जैसे ओमप्रकाश राजभर ने पहले द्रौपदी मुर्मू को समर्थन किया इसके बाद उन्हें वाई कैटेगरी की सुरक्षा दी जाती है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से उनकी मुलाकात होती है. ये संकेत दे रहे हैं कि जब राजभर गठबंधन से अलग हुए तो वो बीजेपी के लिए फिर से अहम बन गए.
 
सपा से नाराज लोगों को भी साथ लाने की कोशिश
बीजेपी जानती है कि पूर्वांचल में गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, बलिया, अंबेडकरनगर, जौनपुर ऐसे जिले हैं जहां पर राजभर जिसके साथ आएंगे उसे फायदा मिलेगा. 2022 में जब अखिलेश यादव के साथ आए तो इन जिलों में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा. वहीं दूसरी तरफ सपा से अलग होने एलान करने वाले केशव देव मौर्य की बात करें तो गठबंधन तोड़ने के बाद से ही बीजेपी नेताओं से उनकी मुलाकात हो रही है. शिवपाल यादव का भी खुले तौर पर द्रौपदी मूर्मु का समर्थन करना ये दिखाता है कि उनका झुकाव कहां है.
 
ओबीसी वोटबैंक को लुभाने में लगी
दारा सिंह चौहान के पार्टी छोड़कर जाने के बाद सपा गठबंधन के सहयोगी संजय चौहान भी कहीं ना कहीं बीजेपी की फेवरिट लिस्ट में शामिल हैं. शिवपाल यादव को अगर छोड़ दें तो बाकी सभी नॉन यादव ओबीसी बिरादरी से आते हैं और बीजेपी इस वोट बैंक को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहती है. हालांकि पार्टी के नेता कह रहे कि बीजेपी जाति के आधार पर कोई कार्यक्रम नहीं करती बल्कि सबका साथ सबका विकास के सिद्धांत पर आगे बढ़ती है. वहीं सपा गठबन्धन में शामिल रहे दलों को पार्टी में लेने के सवाल पर नेता कह रहे हैं कि यह तो शीर्ष नेतृत्व को फैसला लेना है.
 
लोकसभा चुनाव में 80 की 80 सीटें जीतने का लक्ष्य
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के साथ जाने के सवाल पर सपा से सबसे पहले गठबंधन तोड़ने वाले केशव देव मौर्य कह रहे हैं कि अभी इस पर कोई विचार नहीं किया है और ना ही बीजेपी की तरफ से उन्हें कोई बुलावा आया है. लेकिन वो ये जरूर कहते हैं कि अखिलेश यादव ने उनका सम्मान नहीं किया. 

2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने 80 की 80 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और ये तभी संभव है जब सबका बर्तन उसे मिल सके और इसीलिए शायद अब बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए गुलदस्ते के उन फूलों को भी साथ लेने की तैयारी कर ली है जिन्हें कभी वह खुद मुरझाया हुआ कहती थी. 
 
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