Lok Sabha Election 2024: घोसी उपचुनाव में मिली करारी हार से बीजेपी (BJP) को जबरदस्त झटका लगा है. बीजेपी को न सिर्फ हार मिली बल्कि पिछले साल के मुकाबले उसका वोट प्रतिशत भी कम रहा. घोसी उपचुनाव के अलावा खतौली और मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में भी लगभग इसी तरह के आंकड़े देखने को मिले थे, जहां सपा गठबंधन को एकतरफा जीत मिली, बसपा की गैर मौजूदगी में दलित वोटरों ने उनके पक्ष में वोट किया, ऐसे में पिछले एक साल में हुए इन तीनों उपचुनावों ने बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है.  


घोसी, खतौली और मैनपुरी उपचुनाव में हुई बीजेपी की हार को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. इन तीनों चुनावों से बसपा सुप्रीमो मायावती ने दूरी बनाए रखी थी, ऐसे में बसपा के वोटबैंक का फायदा सत्ताधारी पार्टी नहीं उठा सकी और दलितों को लुभा नहीं पाई. बसपा के वोटरों ने सपा व आरएलडी के समर्थन में वोट किया. 


बीजेपी से छिटके दलित वोटर


घोसी की ही बात करें तो 2022 के चुनाव में यहां से सपा के दारा सिंह चौहान को जीत हासिल हुई. इन चुनाव में सपा को 42.21 फीसदी वोट, बीजेपी को 33.57 फीसदी और बीएसपी को 21.12 फीसदी वोट मिले थे. इसी साल जुलाई में दारा सिंह चौहान इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए, जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव कराए गए और बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को ही टिकट दे दिया. बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई, सीएम योगी भी चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे, दलितों को रिझाने के लिए चर्चित गेस्ट हाउस कांड तक जिक्र किया, जब मायावती पर हमला किया गया.


तमाम कोशिशों के बावजदू सपा ने घोसी में शानदार जीत हासिल की और सुधाकर सिंह ने 42,759 वोटों से बीजेपी के दारा सिंह चौहान को हरा दिया. सपा का वोट प्रतिशत भी बढ़कर 57.2 फीसद हो गया. इसमें दलित वोटों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी रही. इस क्षेत्र में 19 फीसद दलित मतदाता हैं, जिनमें अधिकांश जाटव हैं. ऐसे में दलितों ने बीजेपी के बजाय सपा पर ज्यादा भरोसा जताया. 


BJP की जगह सपा-रालोद पर जताया भरोसा


इसी तरह दिसंबर 2022 में हुए खतौली उपचुनाव की बात करें तो यहां भी सपा-रालोद के गठबंधन के सामने बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. ये सीट पहले बीजेपी के खाते में थी, जिसपर विक्रम सिंह सैनी ने 45.34 फीसदी वोट हासिल कर जीत हासिल की थी. तब रालोद को 38 प्रतिशत वोट और बसपा को 14.15 फीसद वोट मिले. उपचुनाव में बसपा ने फिर कोई प्रत्याशी नहीं उतारा ऐसे में आरएलडी के मदन भैया ने 54.23 फीसद वोट के साथ जीत दर्ज की जबकि बीजेपी प्रत्याशी को 41.72 फीसदी वोट मिले.


दिलचस्प बात ये है कि खतौली में भी मुस्लिमों के बाद दूसरे नबंर पर दलित वोटर हैं. आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर ने भी सपा-रालोद के समर्थन में आ गए थे इससे दलित वोटर सपा-रालोद के साथ गए और बीजेपी को बहुत कम वोट ही मिल पाए. 


BSP की गैरमौजूदगी का फायदा नहीं उठा सकी BJP


दिसंबर में ही हुए मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में भी दलितों ने सपा का साथ दिया. ये सीट सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई थी, जिस पर सपा ने डिंपल यादव को मैदान में उतारा और बीजेपी ने रघुराज शाक्य को टिकट दिया. इस उपचुनाव में डिंपल यादव ने 64.49 फीसदी वोट पाकर बड़ी जीत दर्ज की. जबकि प्रत्याशी को सिर्फ 34.39 फीसदी वोट मिले. यहां पर भी बसपा नदारद थी, ऐसे में दलित वोटर बीजेपी से दूर और सपा के साथ आ गए. बसपा की गैरमौजूदगी में दलितों ने सपा को वोट दिया.


इन तीनों उपचुनाव के नतीजे बीजेपी को इसलिए परेशान करने वाले हैं क्योंकि भाजपा दावा करती आई है कि उसने इस समुदाय को मुफ्त राशन, घर, एलपीजी कनेक्शन जैसी कल्याणकारी योजनाओं से लाभ पहुंचाया. बावजूद इसके अब दलित वोटर्स बीजेपी से छिटक रहे हैं. हालांकि बीजेपी का दावा है कि इन शिकस्त की सबसे बड़ी वजह गलत उम्मीदवारों का चयन किया जाना रहा है.


मैनपुरी में सपा ने रघुराज शाक्य को टिकट दिया जो पहले सपा में थे, घोसी में भी बीजेपी ने सपा छोड़कर आए दारा सिंह चौहान पर भरोसा जताया और खतौली में विक्रम सिंह सैनी की पत्नी को टिकट दिया, जिन्हें कुछ दिन पहले अयोग्य घोषित कर दिया गया था. 


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