UP Politics: कांशीराम के बहाने बसपा के वोट बैंक को साधने में जुटी सभी पार्टियां, मायावती की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में सपा, कांग्रेस हो या भाजपा, सभी राजनीतिक दलों की नजर दलित वोटरों पर टिकी है. ऐसे में राजनीतिक दल उन्हें जोड़ने की कवायद में जुटे हैं.
UP Politics: आगामी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Electiion 2024) से पहले यूपी में सभी राजनीतिक दलों की नजरें अब दलित वोटरों पर हैं. प्रदेश में दलित मतदाताओं की संख्या 22 फीसदी है जो किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाता है. ऐसे में आज बसपा के संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर दलितों को अपने खेमे में लाने के लिए तमाम राजनीतिक दलों ने बड़े स्तर पर तैयारी की है. जहां कांग्रेस (Congress) एक बार फिर दलितों में अपने खोए जनाधार तको तलाश कर रही है तो वहीं सपा (SP) भी पीछे नहीं है.
कांशीराम परिनिर्वाण दिवस को देखते हुए कांग्रेस आज से प्रदेशभर में दलित संवाद, दलित गौरव यात्रा की शुरुआत करने जा रही है. इसके साथ ही रात को दलित चौपालों के जरिए एक विधानसभा में ढाई सौ दलितों से संपर्क स्थापित किया जाएगा. कांग्रेस का ये कार्यक्रम 9 अक्टूबर से 26 नवंबर तक चलेगा, जिसमें अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और दलित वोटरों को जोड़ने की कोशिश की जाएगी.
दलित वोटरों पर कांग्रेस की नजर
कांग्रेस को उम्मीद है प्रदेश में कमजोर होती बसपा के बाद किसी तरह दलितों को एक बार फिर से पार्टी के साथ जोड़ा जाए, ताकि अपने पुराने जनाधार के बीच पार्टी को मजबूत किया जा सके. कांग्रेस 18 मंडलों पार्टी दफ्तर में ये आयोजन करेगी. इस दौरान करीब एक लाख वोटरों से दलित अधिकार पत्र भरवाने का भी लक्ष्य रखा गया है.
सपा भी दलितों को साधने में जुटी
एक तरफ जहां कांग्रेस ने दलितों को साधने के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने भी कमर कस ली है. 2019 में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. इस दौरान सपा को पांच सीटें और बसपा को दस सीटों पर जीत हासिल हुई थीं, हालांकि बाद में बसपा सुप्रीमो ने ये कहकर सपा से गठबंधन तोड़ लिया कि सपा अपना वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं करा पाई, जबकि बसपा के वोटरों ने सपा को वोट दिया.
बसपा से गठबंधन टूटने के बाद भी सपा लगातार दलितों को जोड़ने के प्रयास में जुटी रही. सपा अध्यक्ष तो लगातार पीडीए फॉर्मूले का जिक्र करते हैं, जिसमें पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को शामिल किया गया है. अखिलेश यादव का दावा है कि उनका पीडीए लोकसभा चुनाव में एनडीए को हरा देगा और जिस यूपी से बीजेपी केंद्र की सत्ता में काबिज हुई है उसी यूपी से उसकी विदाई होगी.
पिछले चुनाव में बीजेपी के साथ दिखे दलित
वहीं बीजेपी भी लगातार दलित वोटरों के अपने साथ होने का दावा करती है. बीजेपी का दावा है कि अबतक केंद्र सरकार की जितनी भी योजनाएं रही हैं, उनसे सबसे ज्यादा फायदा इसी वर्ग के लोगों को पहुंचा है. इसलिए दलित वोटर उनके साथ मजबूती से खड़े हैं. हालांकि पिछले चुनावों में इसका असर भी देखने को मिला था जब सपा-बसपा के गठबंधन के बावजूद बीजेपी ऐसी जगहों पर भी जीत हासिल करने में कामयाब रही, जहां दलित वोटरों की संख्या ज्यादा है.
बता दें कि, यूपी में भी सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत आबादी ओबीसी वर्ग की है तो वहीं दलित की करीब 22 प्रतिशत तक हिस्सेदारी है. सपा ने इसके साथ अल्पसंख्यों को भी जोड़ा लिया है. इसी फॉर्मूले के सहारे अखिलेश यादव इस बार बीजेपी को हराने का भी दावा कर रहे हैं.