Lok Sabha Election 2024: उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण के तहत वोटिंग में अब दस दिन से कम का वक्त बचा है. इसी चरण में राज्य की मुजफ्फरनगर सीट पर वोट डाले जाएंगे. इस बार बीजेपी टिकैत परिवार के घर में जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रही है. जीत की हैट्रिक लगाने के लिए बीजेपी ने इस बार फिर से दो बार से लगातार सांसद संजीव बालियान को मैदान में उतारा है.
बीजेपी के ओर से 51 साल के संजीव बालियान मैदान में हैं, जो मौजूदा वक्त में मोदी सरकार में राज्यमंत्री हैं. वह पहली बार 2014 में चुनाव जीते थे और उसके बाद 2019 में फिर से जीत दर्ज की थी. संजीव बालियान जाट समाज से आते हैं और इस समाज में उनकी अच्छी पकड़ है. वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने उनके खिलाफ 69 साल के पूर्व राज्यसभा सांसद हरेंद्र मलिका को अपना उम्मीदवार बनाया है.
सपा उम्मीदवार हरेंद्र मलिक 1985 से राजनीति में सक्रिय हैं लेकिन इस बार उन्हें अपने प्रतिद्वंदी बीजेपी उम्मीदवार को जीत की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए अपने 39 साल के राजनीति अनुभव को झोंकना होगा. वह चार बार विधायक और एक बार सांसद रहे चुके हैं. जबकि पांचवीं बार चुनावी मैदान में है. जाट समाज से होते हुए भी अपने समाज को अपने पाले में लाना इनके लिए चुनौती होगी क्योंकि बीते चुनावों के दौरान यह समाज बीजेपी के साथ रहा है.
क्या है जातीय समीकरण
बीते कुछ सालों के चुनाव पर नजर डालें तो 1999 में इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर सैयद सईदुज्जमां ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2004 में सपा के टिकट पर मुनव्वर हसन ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2009 के चुनाव बीएसपी के टिकट पर कादिर राणा ने जीत दर्ज की. 2014 और 2019 के मोदी लहर में इसी सीट पर संजीव बालियान ने जीत दर्ज की थी. इस बार वह जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहे हैं.
अब अगर मुजफ्फरनगर के जातीय समीकरण की बात करें तो इस सीट पर सबसे ज्यादा 28 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. इसके बाद सबसे ज्यादा 22 फीसदी जाट वोटर्स हैं. यानी देखा जाए तो मुस्लिम और जाट मिलकर इस सीट पर 50 फीसदी होते हैं. इसके बाद दलित 18 फीसदी, गुर्जर 10 फीसदी और अन्य वर्ग के 22 फीसदी वोटर्स हैं.
इस वजह से चर्चा में रही सीट
बीजेपी के संजीव बालिया और सपा के हरेंद्र मलिक को इस बार बीएसपी से दारा सिंह प्रजापति चुनौती दे रहे हैं. 2013 में हुए दंगे के बाद यह सीट काफी चर्चा में रही है और बीजेपी ने मुस्लिम वोटर्स के खिलाफ अन्य तबके को लामबंद करने में सफलता पाई है. खास बात यह है कि किसान आंदोलन के दौरान चर्चा में रहे टिकैत परिवार का घर इसी मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में पड़ता है.
सिसौली गांव को यहां किसानों की राजधानी भी कहा जाता है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान यह परिवार कई बार सरकार के नीतियों के खिलाफ खुलकर मैदान में आते रहा है. इस वजह से यह सीट बीजेपी के लिए और खास बन गई है. हालांकि टिकैत परिवार के घर में इस बार बीजेपी के जीत की हैट्रिक लगा पता है या नहीं, ये तो चार जून को नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा.