UP Lok Sabha Election 2024: देश के सबसे बड़े राज्य में ग्रैंड ओल्ड पार्टी- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में राहें आसान नहीं हैं. भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (I.N.D.I.A.) के परचम तले समाजवादी पार्टी के साथ इलेक्शन लड़ रही कांग्रेस के लिए यह चुनाव अस्तित्व बचाने की लड़ाई सरीखा है. इसके अलावा उसके समक्ष तीन बड़े यक्ष प्रश्न हैं जिनका जवाब पार्टी को खोजना ही होगा.
एक ओर जहां कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने रायबरेली सीट छोड़ने का फैसला करने के बाद राज्यसभा का रुख कर लिया वहीं अमेठी सीट पर भी अभी तक पार्टी की ओर से कोई स्पष्ट संकेत नहीं आया है. यूपी कांग्रेस के चीफ अजय राय समेत केंद्रीय नेतृत्व के नेता भले यह दावा कर रहे हों कि रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट से गांधी परिवार का ही कोई शख्स चुनाव लड़ेगा लेकिन अभी तक कहीं ऐसी कोई सुगबुगाहट नहीं है. साल 2014 के चुनाव में 2 सीटों पर सिमटी कांग्रेस, सन्, 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट हार गई और सिर्फ रायबरेली ही उसके पास बची.
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है अमेठी को दोबारा हासिल करना और रायबरेली में उसकी रणनीति क्या होगी? साल 2017 के विधानसभा चुनाव में जब पहली बार राहुल गांधी और अखिलेश यादव साथ आए तब कुछ खास नहीं हो सका. सपा की सरकार चली गई और यूपी में कांग्रेस विधायकों की संख्या सिंगल डिजिट में चली गई.
इस लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने जातीय संदेश भी देने की कोशिश की है. एक ओर जहां अजय राय को यूपी कांग्रेस का मुखिया बनाया है तो वहीं अविनाश पांडेय को प्रभारी. दूसरी ओर पार्टी ने मुस्लिमों को साधने की कोशिश में भी है. ओबीसी वोटर्स को अपने साथ लाने के लिए कांग्रेस, सपा के साथ है. यूपी में सपा ने कांग्रेस को 17 सीटें दी हैं, ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वह किसे कैंडिडेटे्स चुनती है.
ये तीन सवाल कर रहे परेशान
17 सीटों में से कांग्रेस को कुछ ऐसे संसदीय क्षेत्र भी मिले हैं जहां उसे जातीय समीकरण के लिए भी निर्भर रहना पड़ सकता है. ऐसे में उसके लिए सबसे पहला यक्ष प्रश्न यह है कि वह उम्मीदवारों का चयन किस आधार पर करे कि जातीय समीकरण के खांचे में वह फिट बैठ सके. दूसरा बड़ा सवाल यह है कि अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट पर उसकी क्या रणनीति होगी. अगर गांधी परिवार के किसी शख्स ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया तो वह ऐसा क्या करेगी जिससे उसके गढ़ बचे रहें.
इसके अलावा तीसरा सवाल और अहम सवाल यह है कि साल 2004 के लोकसभा चुनाव में 9, साल 2009 के लोकसभा चुनाव में 21 और फिर 2014 के चुनाव में 2 और 2019 में 1 लोकसभा सीटें जीतने वाली पार्टी अपना मत प्रतिशत कैसे उठाएगी. चाहे चुनाव साल 2017 का हो या 2022 का पार्टी का मत प्रतिशत गिरता ही जा रहा है.
सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 12,साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 6.25 फीसदी मत मिले थे. वहीं 2019 के आम चुनाव में पार्टी को 6.36 प्रतिशत वोट मिले थे. 2022 के विधानसभा चुनाव में 2.33 फीसदी वोट मिले थे.